POCSO कानून जेंडर न्यूट्रल, नाबालिग शोषण मामले में महिला की FIR रद्द नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (18 अगस्त) को एक 52 वर्षीय महिला की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने अपने खिलाफ दर्ज यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) की शिकायत को रद्द करने की मांग की थी। यह शिकायत एक नाबालिग लड़के के माता-पिता ने POCSO एक्ट के तहत दर्ज कराई थी। अदालत ने कहा कि इस कानून के प्रावधान पुरुष और महिला दोनों पर लागू होते हैं और यह अधिनियम “जेंडर न्यूट्रल” (लैंगिक रूप से निष्पक्ष) है।
जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने आदेश सुनाते हुए कहा, “POCSO अधिनियम एक प्रगतिशील कानून है, जिसका उद्देश्य बचपन की पवित्रता की रक्षा करना है। यह लैंगिक निष्पक्षता पर आधारित है और बच्चों की सुरक्षा करना इसका कल्याणकारी उद्देश्य है, चाहे उनका लिंग कोई भी हो।”
अदालत ने आगे कहा, “POCSO अधिनियम की धारा 3 और 5, जो धारा 4 और 6 के अपराधों की नींव हैं, यौन उत्पीड़न के विभिन्न रूपों को परिभाषित करती हैं। यद्यपि कुछ प्रावधानों में लिंग आधारित शब्दों का प्रयोग है, लेकिन अधिनियम की प्रस्तावना और उद्देश्य उन्हें समावेशी बनाते हैं। धारा 4 में उल्लिखित 'Penetrative Sexual Assault' के तत्व पुरुष और महिला दोनों पर समान रूप से लागू होते हैं। इसलिए यह अधिनियम समावेशी है।”
अदालत ने आरोपी महिला के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि मामले के दर्ज होने में चार साल की देरी हुई है। अदालत ने कहा,
“अपराध के पंजीकरण में हुई देरी कार्यवाही को खारिज करने का आधार नहीं हो सकती, विशेषकर जब मामला गंभीर अपराध और नाबालिग पीड़ित से जुड़ा हो।”
अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी द्वारा दी गई मनोवैज्ञानिक असंभवता और 'पोटेंसी टेस्ट' की अनुपस्थिति की दलील आधुनिक न्यायशास्त्र के सामने टिकती नहीं है।
अदालत ने इस तर्क को भी सख्ती से खारिज कर दिया कि “महिला केवल निष्क्रिय प्रतिभागी हो सकती है और पुरुष सक्रिय प्रतिभागी।”
जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा, “यह सोच ही पुरानी और अप्रासंगिक है। आधुनिक न्यायशास्त्र वास्तविकताओं को स्वीकार करता है और कानूनी परीक्षण में पुराने सामाजिक रूढ़ियों को जगह नहीं देता।”
अंत में अदालत ने कहा,“याचिकाकर्ता की ओर से पेश की गई किसी भी दलील में कोई दम नहीं है। अतः याचिका खारिज की जाती है।”
इस मामले में सिनियर एडवोकेट हाशमत पाशा ने महिला की ओर से दलील दी थी कि शिकायत धारा 4 (Penetrative Sexual Assault की सजा) और धारा 6 (Aggravated Penetrative Sexual Assault की सजा) के तहत चार साल बाद दर्ज की गई है। आरोप है कि महिला ने 2020 में अपने पड़ोसी 13 वर्षीय लड़के के साथ अपराध किया था, जबकि FIR 2024 में दर्ज हुई। पाशा ने कहा था कि दोनों पक्षों के बीच आर्थिक लेन-देन था और भुगतान से बचने के लिए यह झूठा मामला बनाया गया है।
पिछले साल अंतरिम आदेश में अदालत ने भी माना था कि मामला अजीब परिस्थितियों वाला है क्योंकि 52 वर्षीय महिला पर 13 वर्षीय लड़के से जुड़े आरोप लगे हैं। FIR 2024 में दर्ज हुई जबकि घटना 2020 की बताई जा रही है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए, अधिवक्ता पाशा ने अदालत से आग्रह किया था कि सुनवाई इन-कैमरा (गोपनीय रूप से) की जाए, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।