
कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को M Moser Design Associated India Pvt Ltd द्वारा दायर एक याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें केंद्र सरकार को भारत में प्रोटॉन मेल के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने याचिका पर पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया और मौखिक रूप से कहा, "याचिकाकर्ता आपको सक्षम न्यायालय के माध्यम से कुछ करने में सहायता कर रहा है, यह एक गंभीर मुद्दा है, हम इस पर आदेश पारित करेंगे। यह पूरी तरह से निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होगा। अब केंद्र सरकार को कार्य करना होगा।"
कंपनी की ओर से पेश एडवोकेट जतिन सैघल ने दलील दी कि प्रोटॉन मेल के सर्वर भारत के बाहर हैं और वे दावा करते हैं कि वे भारतीय कानूनों के अधीन नहीं हैं। यह भी बताया गया कि यह वेबसाइट अपने उपयोगकर्ताओं को सर्वर स्थान के रूप में भारत का चयन करने की अनुमति देती है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उपयोगकर्ता भारत से इसका उपयोग कर रहा है। आगे कहा गया कि भारत में स्कूलों को भेजे गए कई बम धमकी वाले ईमेल इस सेवा का उपयोग करके भेजे गए थे।
याचिकाकर्ता ने यह भी जानकारी दी कि रूस और सऊदी अरब ने पहले ही अपने देशों में प्रोटॉन मेल सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसलिए, इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया। यह भी प्रस्तुत किया गया कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और नियमों के तहत, या तो सर्वर देश के अंदर होने चाहिए या फिर सरकार को उन सर्वरों तक पहुंच मिलनी चाहिए।
हाईकोर्ट के समक्ष याचिका की स्वीकार्यता के मुद्दे पर, वकील ने IT Act की धारा 69 का हवाला देते हुए कहा कि हाईकोर्ट को प्रतिबंध लगाने के लिए निर्देश जारी करने की शक्ति प्राप्त है और यह कोई वैकल्पिक उपाय नहीं, बल्कि समानांतर उपाय है। अंत में, उन्होंने कहा, "हम एक ऐसे देश हैं जहाँ कानून प्रवर्तन एजेंसियों को किसी प्लेटफॉर्म तक पहुँच नहीं मिलती, तो उसे संचालित करने की अनुमति नहीं दी जाती। यदि आप भारतीय कानूनों का पालन नहीं कर रहे हैं, यदि आप अपने सर्वर तक पहुँच देने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आप भारत में काम नहीं कर सकते।"
संघ सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अरविंद कमाथ ने दलील दी कि "भारत और स्विट्जरलैंड के बीच आपसी सहायता समझौता है और एक सक्षम आपराधिक न्यायालय, किसी जाँच अधिकारी के अनुरोध पर, दूसरे देश से जानकारी प्राप्त करने के लिए 'लेटर ऑफ रोगेटरी' जारी कर सकता है। इसलिए गृह मंत्रालय या MEITY इस मुद्दे से स्वयं नहीं निपट सकते।"
इसके अलावा, जिस राहत की मांग ईमेल सेवा को प्रतिबंधित करने के लिए की गई थी, उस पर उन्होंने कहा, "यदि उच्च न्यायालय प्रासंगिक नियमों के तहत कोई निर्देश देता है, तो हम उसका पालन करेंगे।"
इसके बाद, न्यायालय ने अपना आदेश सुरक्षित रखा।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता कंपनी ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें Proton Mail के आपराधिक और अवैध उपयोग का मामला उठाया गया है। इसमें कहा गया है कि कंपनी की वरिष्ठ महिला कर्मचारियों को बार-बार निशाना बनाया गया और उन्हें अश्लील, अपमानजनक और भद्दी भाषा तथा यौन संकेतों वाले अपमानजनक शब्दों सहित एआई जनित डीपफेक छवियों और अन्य यौन रूप से आपत्तिजनक सामग्री के साथ ईमेल भेजे गए।
याचिका में दावा किया गया है कि इस तरह की ईमेल कंपनी के कई कर्मचारियों, सहयोगियों, विक्रेताओं और प्रतिस्पर्धियों को भेजी गईं, जिससे प्रभावित कर्मचारियों को अपूरणीय प्रतिष्ठात्मक और मानसिक क्षति हुई।
आगे यह तर्क दिया गया कि हालांकि इस मामले में 09.11.2024 को FIR दर्ज की गई थी, लेकिन पुलिस ने आरोपी की पहचान के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। इससे मजबूर होकर कंपनी को न्यायालय क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष पुलिस जांच की निगरानी के लिए आवेदन दाखिल करना पड़ा।
न्यायालय के निर्देश पर पुलिस ने एक स्थिति रिपोर्ट दायर की, जिसमें यह खुलासा हुआ कि कोई ठोस या प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई, और भारत और स्विट्जरलैंड के बीच आपसी कानूनी सहायता व्यवस्था का उपयोग भी नहीं किया गया।
याचिका में माँग की गई है कि पुलिस को निर्देश दिया जाए कि वह आरोपी द्वारा भेजे गए आपत्तिजनक ईमेल से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी और दस्तावेजों को भारत और स्विट्जरलैंड के बीच आपसी कानूनी सहायता व्यवस्था के माध्यम से एक निर्धारित समय-सीमा में एकत्र करे।
इसके अलावा, याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है कि पुलिस को निर्देश दिया जाए कि वह संबंधित मजिस्ट्रेट के माध्यम से 'लेटर रोगेटरी' कानूनी अनुरोध जारी करने के लिए तुरंत कदम उठाए, ताकि स्विट्जरलैंड के फेडरल ऑफिस ऑफ जस्टिस से आरोपी से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी और दस्तावेज प्राप्त किए जा सकें।