राज्य मानवाधिकार आयोग पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को केवल सिफारिश कर सकता है, निर्देश नहीं दे सकता: कर्नाटक हाइकोर्ट ने दोहराया
कर्नाटक हाइकोर्ट ने दोहराया कि राज्य मानवाधिकार आयोग पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार को केवल सिफारिश कर सकता है, निर्देश पारित नहीं कर सकता।
जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और जस्टिस सीएम पूनाचा की खंडपीठ ने पुलिस निरीक्षक के रूप में काम करने वाले सी गिरीश नाइक द्वारा दायर याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की।
अदालत ने कहा,
“चौथे प्रतिवादी [कर्नाटक राज्य मानवाधिकार आयोग] द्वारा जारी दिनांक 12-3-2020 की रिपोर्ट नहीं होगी। इसे निर्देश के रूप में नहीं, बल्कि सिफ़ारिश के रूप में माना जाना चाहिए।”
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 12-3-2020 की रिपोर्ट में आयोग ने कुछ सिफारिशें जारी कीं और उक्त सिफारिशों को पढ़ने से पता चलता है कि वे निर्देशों की प्रकृति में हैं, जो मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 (Protection of Human Rights Act, 1993) की धारा 18 के दायरे से परे हैं।
खंडपीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 29 के आधार पर राज्य आयोग द्वारा की गई जांच अधिनियम की धारा 18 द्वारा रेगुलेट होती है। अधिनियम की धारा 18(ए) विशेष रूप से निर्धारित करती है कि जहां जांच में मानवाधिकारों के उल्लंघन का खुलासा होता है आयोग संबंधित सरकार या प्राधिकरण को उपधारा (i), (ii) और ( iii) धारा 18(ए) के अंतर्गत सिफारिश कर सकती है।
एनसी ढौंडियाल बनाम भारत संघ और अन्य 2004 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए और सी. गोपाल बनाम कर्नाटक राज्य मानवाधिकार आयोग (2015) में समन्वय पीठ के फैसले के बाद अदालत ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार की।
साथ ही कहा,
“आधिकारिक उत्तरदाता उचित कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होंगे, जैसा कि वे कानून के अनुसार दिनांक 12.3.2020 की उक्त रिपोर्ट/सिफारिश के आधार पर उचित समझे।”
केस टाइटल- सी गिरीश नाइक और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य