कर्नाटक हाईकोर्ट ने विमान अधिनियम के तहत पायलट के खिलाफ आपराधिक मामला खारिज किया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि विमान अधिनियम की धारा 11 के तहत अपराध तब तक कायम नहीं रह सकता, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी से मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी के साथ शिकायत दर्ज न की गई हो।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने इस प्रकार का फैसला सुनाया और पायलट आकाश जायसवाल द्वारा दायर याचिका स्वीकार की तथा धारा 11ए के तहत उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही रद्द की।
अभियोजन पक्ष के अनुसार जायसवाल 2020 में जक्कुर हवाई अड्डे पर एक विमान उड़ा रहे थे और उड़ान भरने के समय विमान बाईं ओर मुड़ गया। इस तरह के मोड़ के कारण विमान पलट गया। हालांकि, किसी भी व्यक्ति या याचिकाकर्ता को कोई चोट नहीं आई।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संबंधित न्यायालय अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता, क्योंकि यह अधिनियम की धारा 12बी के विपरीत है, जिसमें कहा गया कि जब तक अधिनियम की धारा 12बी में उल्लिखित प्राधिकारियों के हाथों से याचिकाकर्ता पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं मिल जाती, तब तक किसी भी न्यायालय द्वारा संज्ञान लेना कानून के विपरीत होगा। इसके अलावा, विमानन विभाग ने विभागीय जांच में याचिकाकर्ता को दोषमुक्त कर दिया।
अभियोजन पक्ष ने दलील का विरोध करते हुए कहा कि वास्तव में इसे विमान दुर्घटना बताकर अपराध दर्ज करने की अनुमति दी गई। इसलिए इस न्यायालय को कार्यवाही में बाधा नहीं डालनी चाहिए और याचिकाकर्ता को पूरी तरह से सुनवाई में बेदाग निकलना चाहिए।
अधिनियम की धारा 12बी का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा,
"इसमें कहा गया कि कोई भी न्यायालय नागरिक विमानन महानिदेशक या नागरिक विमानन सुरक्षा ब्यूरो के महानिदेशक या विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो के महानिदेशक द्वारा लिखित रूप में की गई शिकायत पर अधिनियम के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।"
इसके बाद पीठ ने कहा,
"इस मामले में यह तथ्य स्वीकार किया गया कि शिकायत से पहले कोई अनुमति नहीं ली गई है, जैसा कि कानून में आवश्यक है। शिकायत का अर्थ है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 के तहत विद्वान मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत करना, न कि क्षेत्राधिकार वाली पुलिस के समक्ष शिकायत करना।"
इस प्रकार, पीठ ने कहा,
"इस दोहरी परिस्थिति में कि शिकायत विद्वान मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं है। शिकायत उपरोक्त अधिकारियों की पूर्व अनुमति के साथ नहीं है, अमृतहल्ली पुलिस स्टेशन के समक्ष शिकायत दर्ज करने का पूरा कार्य और विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने का कार्य अमान्य है।"
पीठ ने कहा,
"यह स्वीकार किया गया तथ्य है कि शिकायत से पहले उसमें उल्लिखित अधिकारियों से कोई अनुमति नहीं ली गई, इसलिए एफआईआर दर्ज करना कानून के विपरीत है। मामले में आगे की सुनवाई की अनुमति केवल इसलिए देना, क्योंकि पुलिस ने अपना आरोप पत्र दाखिल किया। अदालत ने संज्ञान लिया, निस्संदेह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और न्याय की विफलता होगी।"
केस टाइटल: आकाश जायसवाल और कर्नाटक राज्य