NI Act की धारा 138 के तहत नोटिस तभी वैध जब आरोपी के अंतिम ज्ञात पते पर भेजा गया हो, आरोपी पर यह बताने का दायित्व कि उसने इसे क्यों प्राप्त नहीं किया: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत चेक के अनादर के संबंध में कानूनी नोटिस यदि रजिस्टर्ड डाक द्वारा आरोपी के उस पते पर भेजा जाता है, जो शिकायतकर्ता को ज्ञात है तो उसे तामील किया गया माना जाएगा और यह आरोपी पर निर्भर है कि वह कवर क्यों प्राप्त नहीं कर सका।
जस्टिस वी श्रीशानंद की एकल पीठ ने सी निरंजन यादव द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला, सुनाया जिसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी। इसमें उसे अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था और उस पर 75,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
आरोपी द्वारा उठाए गए आधारों में से कानूनी नोटिस जारी करने और उसे तामील न किए जाने के संबंध में था। यह दावा किया गया कि शिकायतकर्ता डाकिये के साथ गया था और उसे एक शारा लौटाया गया, जिसमें लिखा कि दावा नहीं किया गया जबकि आरोपी उक्त पते पर नहीं रहता था।
इस बात को नकारते हुए अदालत ने कहा,
"वापस किए गए कवर नोटिस के पृष्ठांकन का संज्ञान लेने के लिए यह देखा जाना चाहिए कि क्या आरोपी का पता जो शिकायतकर्ता को ज्ञात है। रजिस्टर्ड कवर पर ठीक से उल्लेख किया गया। यदि इसे ऐसे रजिस्टर्ड पते पर भेजा जाता है तो शिकायतकर्ता की जिम्मेदारी समाप्त हो जाएगी और यह आरोपी पर निर्भर है कि वह कवर क्यों प्राप्त नहीं कर सका।"
पीठ ने उल्लेख किया कि आरोपी ने अपनी क्रॉस एग्जामिनेशन में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि वर्ष 2013 में वह अपने पिता के साथ गांधी नगर में रह रहा था। उसने गांधी नगर में घर कब खाली किया कब वह विनोबा नगर में रहने लगा और क्या उसने मामले के उक्त पहलू को शिकायतकर्ता को सूचित किया है या किसी आधिकारिक रिकॉर्ड में पते में किए गए ऐसे परिवर्तन का रिकॉर्ड में उल्लेख नहीं है।
उन्होंने कहा,
"जनरल क्लॉज एक्ट 1897 के तहत यह अनुमान लगाया जाता है कि यदि किसी व्यक्ति ने किसी रजिस्टर्ड पत्र को उस अंतिम ज्ञात पते पर संबोधित किया है जो किसी विशेष व्यक्ति को ज्ञात था तो उसे तामील किया गया माना जाता है। ऐसी परिस्थितियों में शिकायतकर्ता के लिए क्रॉस एग्जामिनेशन में प्राप्त स्वीकारोक्ति इतनी महत्वपूर्ण नहीं है कि शिकायतकर्ता के पूरे मामले को खारिज कर दिया जाए।”
यह भी रेखांकित किया कि नोटिस जारी करने का उद्देश्य केवल चेक के वास्तविक धारक को आपराधिक कार्रवाई से बचाना है।
इस मामले में पीठ ने कहा,
"आरोपी को ट्रायल मजिस्ट्रेट के समक्ष या कम से कम अपील के चरण में या कम से कम इस न्यायालय के समक्ष पेश होने के बाद पैसे का भुगतान करने से कोई नहीं रोक सकता।"
इस प्रकार न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल- सी निरंजन यादव और डी रवि कुमार