कर्नाटक हाईकोर्ट ने लॉन्ड्रिंग मामले में वकील को भेजे ED समन पर लगाई रोक
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा एडवोकेट अनिल गौड़ा को भेजे गए समन पर अंतरिम रोक लगाई। यह मामला अवैध ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाज़ी रैकेट से जुड़ा है जिसमें कांग्रेस विधायक के.सी. वीरेंद्र का नाम भी सामने आया है।
जस्टिस सचिन शंकर मागदुम ने आदेश पारित करते हुए ED को निर्देश दिया कि वह आगे की कोई कार्यवाही न करे और न ही वकील के खिलाफ किसी प्रकार की ज़बरदस्ती की कार्रवाई करे।
अदालत ने अपने अवलोकन में कहा कि प्रारंभिक दृष्टि से यह माना जाता है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट यह तय नहीं कर देता कि ED किस सीमा तक और किन परिस्थितियों में प्रैक्टिसिंग वकीलों को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 50 के तहत तलब कर सकती है, तब तक केवल समन जारी करने की शक्ति के आधार पर किसी वकील के खिलाफ कठोर कदम नहीं उठाए जा सकते। अदालत का कहना था कि इसके विपरीत रुख याचिकाकर्ता को गंभीर हानि पहुंचा सकता है, इसलिए उसे अंतरिम संरक्षण दिया जाना आवश्यक है।
याचिका में एडवोकेट गौड़ा ने दलील दी कि ED की कार्यवाही राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती है। उनका कहना था कि वह केवल विधायक वीरेंद्र के कानूनी सलाहकार हैं और उनके खिलाफ किसी भी आपराधिक मामले में प्रत्यक्ष आरोप नहीं है। याचिका में यह भी कहा गया कि ED की कार्रवाई पुराने FIR पर आधारित है, जिनमें से अधिकांश में बरी हो चुका है या आरोपियों को चार्जशीट से बाहर रखा गया। कथित सट्टेबाज़ी PMLA के तहत अनुसूचित अपराध नहीं है और न ही कोई ऐसा प्रॉसीड्स ऑफ क्राइम मौजूद है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग की परिभाषा में शामिल किया जा सके। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि ED मूल अपराध की ही जांच कर रही है, जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट विकास पाहवा ने सुप्रीम कोर्ट की उस कार्यवाही का हवाला दिया, जिसमें जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को उनके क्लाइंट्स को दी गई कानूनी राय के लिए तलब किए जाने पर चिंता जताई गई। उनका कहना था कि गौड़ा द्वारा वीरेंद्र को दी गई कानूनी राय संरक्षित है। उसके आधार पर उन्हें तलब करना गलत है।
दूसरी ओर, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अरविंद कामथ ने ED की ओर से दलील दी कि गौड़ा को उनके वकील होने के नाते नहीं बल्कि उनकी व्यावसायिक कंपनियों में साझेदारी के आधार पर तलब किया गया है। उन्होंने कहा कि गौड़ा, वीरेंद्र की कई कंपनियों में साझेदार हैं और इस नाते उनकी पूछताछ ज़रूरी है।
याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया कि 24 अगस्त, 2025 को जारी समन और उससे जुड़ी कार्यवाही को रद्द किया जाए। वैकल्पिक रूप से यह भी मांग की गई कि ED को निर्देशित किया जाए कि वह गौड़ा से ऐसा कोई बयान न ले, जो PMLA की धारा 50 के तहत ज़बरन साक्ष्य देने जैसा हो और संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत उनके अधिकार का उल्लंघन करता हो।