कर्नाटक हाईकोर्ट ने 16वीं मंजिल के अपार्टमेंट से गिरकर अपनी मां की मौत के मामले में पिता के खिलाफ बेटे द्वारा दायर हत्या का मामला खारिज करने से इनकार किया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 16वीं मंजिल पर स्थित अपने अपार्टमेंट से गिरकर अपनी मां की मौत के बाद पिता के खिलाफ व्यक्ति द्वारा शुरू की गई हत्या की कार्यवाही खारिज करने से इनकार किया।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने देवेंद्र भाटिया द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए कहा,
"जब ऊपर उद्धृत दोनों बच्चों के साक्ष्य याचिकाकर्ता को पकड़ लेते हैं, हालांकि प्रथम दृष्टया, यह समझ से परे है कि यह न्यायालय आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 302 के तहत अपराध पर CrPC की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कैसे करेगा और मुकदमे को कैसे खत्म कर देगा। यदि बच्चों ने याचिकाकर्ता के खिलाफ विस्तृत विवरण देते हुए शिकायत की है तो यह एक प्री-ट्रायल का मामला बन जाता है, जहां याचिकाकर्ता को बेदाग साबित होना होगा।"
अभियोजन पक्ष के अनुसार 26-08-2018 को याचिकाकर्ता ने रसोई से कुछ शोर महसूस किया और रसोई में गया और पाया कि पत्नी रसोई में नहीं थी। फिर वह उपयोगिता के पास गया और उसे नहीं पाया। उपयोगिता से जुड़ी बालकनी में वह बालकनी की 16वीं मंजिल से नीचे देखता है और पाता है कि वहां बहुत सारे लोग इकट्ठे हैं। जब वह और उसका बेटा ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी को चोटों के साथ पड़ा पाया। उसने उन चोटों के कारण दम तोड़ दिया। घटना के 14 दिन बाद और रस्में पूरी होने पर बेटे ने अपने पिता के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
जांच के बाद पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 498-ए के तहत आरोप पत्र दायर किया। याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष डिस्चार्ज एप्लीकेशन दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। इस प्रकार उसने रद्द करने के लिए अदालत का रुख किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जांच अधिकारी को क्षेत्राधिकार से दूसरे क्षेत्राधिकार में बदलने की शक्ति पुलिस आयुक्त के पास उपलब्ध नहीं है। यह केवल संबंधित न्यायालय या इस न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है।
इसके अलावा यह कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए सभी आरोप असंभव हैं। एक पिता द्वारा पत्नी को धक्का देने की कल्पना नहीं की जा सकती, जैसा कि उसके बेटे वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा बताया गया। यह बालकनी से दुर्घटनावश गिरने की घटना थी। न तो धारा 498 ए का अपराध है और न ही धारा 306 आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध है, और न ही धारा 302 के तहत पत्नी की हत्या का अपराध हो सकता है। बेटे का अपने पिता, याचिकाकर्ता के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं था।
शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के लिए यह आरोप लगाना बहुत देर हो चुकी है कि वर्ष 2018 में हुई जांच का हस्तांतरण गलत है। CrPC की धारा 36 के तहत जांच के हस्तांतरण के लिए शक्ति उपलब्ध है यदि यह एक ही डिवीजन या क्षेत्राधिकार के भीतर है।
इसके अलावा धारा 164 के तहत दर्ज बयान केवल बेटे का नहीं था बेटी का बयान भी याचिकाकर्ता को दोनों अपराधों के लिए स्पष्ट रूप से दोषी ठहराएगा। निष्कर्ष: शिकायत और CrPC की धारा 164 के तहत बच्चों के बयान को देखने के बाद पीठ ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि अपराध अत्यधिक असंभव है।
उन्होंने कहा,
“यही मानदंड बच्चों पर भी लागू होता है, कि वे पिता के खिलाफ शिकायत क्यों करेंगे? CrPC की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में बेटी और बेटे के अधिक स्पष्ट विवरण का स्पष्ट अर्थ यह होगा कि याचिकाकर्ता पर दोनों अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।"
इसके अलावा उन्होंने कहा,
“यह तर्क कि दहेज की मांग का कोई आरोप नहीं है, बेकार है, क्योंकि यह सामान्य कानून है कि दहेज की मांग के अभाव में भी क्रूरता आरोप का आधार बन सकती है। आरोप, मेरा मतलब IPC की धारा 498 ए के तहत दंडनीय अपराध है। इसलिए प्रथम दृष्टया IPC की धारा 498ए के तहत अपराध पाया गया। इस पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
अदालत ने पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन में जांच बदलने के बारे में याचिकाकर्ता की दलील भी खारिज की।
याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा,
"याचिका पर विचार करने और याचिकाकर्ता को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई वारंट नहीं है। काल्पनिक कानूनी कमियों से लदी याचिका किसी भी तरह के बचाव के आधार से रहित है। इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए।"
केस टाइटल: देवेंद्र भाटिया और कर्नाटक राज्य और अन्य