NI Act- अभियुक्त के साक्ष्य हलफनामे के माध्यम से प्रस्तुत नहीं किए जा सकते: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2024-07-23 12:08 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि किसी अभियुक्त को परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act (NI Act)) के तहत उसके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में हलफनामे के माध्यम से अपने साक्ष्य प्रस्तुत करने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने शिकायतकर्ता ज़हीदा इनामधर द्वारा दायर याचिका स्वीकार की और अभियुक्त डॉ. फातिमा हसीना सईदा द्वारा हलफनामा दायर करने की अनुमति देने वाले ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और अभियुक्त से जिरह करने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दायर इनामधर का आवेदन खारिज कर दिया।

अदालत ने कहा,

"कानून आरोपी को हलफनामे के माध्यम से अपना साक्ष्य दाखिल करने का कोई अधिकार नहीं देता है। यह शिकायतकर्ता का अधिकार है, और विधायिका ने अपने विवेक से आरोपी को दिए जाने वाले उसी अधिकार को बाहर रखा है।"

शिकायतकर्ता ने आरोपी के खिलाफ एक्ट की धारा 138 के तहत कार्यवाही शुरू की थी। 16-11-2018 को याचिकाकर्ता से आरोपी के वकील ने क्रॉस एग्जामिनेशन की।

25-03-2019 को आरोपी ने मुख्य परीक्षा के लिए अपनी उपस्थिति के बदले में हलफनामा दायर किया, जिसे उस दिन स्वीकार कर लिया गया, जब शिकायतकर्ता अनुपस्थित थी।

इसके बाद शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 311 के तहत आवेदन पेश किया, जिसमें डीडब्ल्यू-1 की आगे की जिरह की मांग की गई। आरोपी ने आपत्तियां दर्ज कीं और ट्रायल कोर्ट ने आवेदन खारिज कर दिया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपी की आगे की क्रॉस एग्जामिनेशन की मांग करने वाली अर्जी खारिज कर दी गई, जो कानून के विपरीत है। इसके अलावा यह प्रार्थना की गई कि अदालत को आरोपी को मुख्य परीक्षा के रूप में दायर हलफनामे के आधार पर मुकदमा जारी रखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

निष्कर्ष:

पीठ ने कहा कि एक्ट की धारा 145 शिकायतकर्ता को हलफनामा साक्ष्य देने का अधिकार प्रदान करती है। यह यहीं तक सीमित है। यह आरोपी को समान अधिकार प्रदान नहीं करता है।

मांडवी कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड बनाम निमेश बी.ठाकोर, (2010) 3 एससीसी 83 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, न्यायालय ने कहा,

"आरोपी को हलफनामा साक्ष्य दाखिल करने का कोई अधिकार नहीं है, मजिस्ट्रेट की कार्यवाही जिसने आरोपी द्वारा हलफनामे के माध्यम से साक्ष्य दाखिल करने की अनुमति दी है, अवैध और अस्थिर है। इसलिए मजिस्ट्रेट की उक्त कार्रवाई को आरोपी के हलफनामे के साक्ष्य को स्वीकार करने के चरण से मिटाना होगा।"

इसके अलावा, इसने धारा 311 सीआरपीसी के तहत किए गए आवेदन को खारिज करने के ट्रायल कोर्ट का आदेश खारिज कर दिया।

कहा गया, 

"किसी विशेष दिन शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति के कारण आरोपी की क्रॉस एक्जामिनेशन शून्य हो जाती है, हलफनामे के माध्यम से उसे साक्ष्य दाखिल करने की अनुमति देने की अवैधता के अलावा। ऐसा नहीं हो सकता कि शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी से जिरह ही न की गई हो। इसलिए न्यायालय को आरोपी/डीडब्लू-1 से आगे क्रॉस एग्जामिनेशन की अनुमति देनी चाहिए थी।"

केस टाइटल- ज़ाहेदा इनामधर और डॉ. फातिमा हसीना सैयदा

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