न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत अपने अपराधों के लिए कंपनी को आवश्यक पक्ष होना चाहिए, निदेशकों पर परोक्ष दायित्व के लिए अलग से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की एकल पीठ ने कहा कि एक कंपनी को न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के तहत अपने अपराधों के लिए एक आवश्यक पक्ष के रूप में आरोपी बनाया जाना चाहिए। निदेशकों सहित उसकी ओर से कार्य करने वाले व्यक्तियों पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है यदि कंपनी स्वयं आरोपी पक्ष के रूप में नामित नहीं किया गया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 की धारा 22 (सी) कंपनियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए दायित्व ढांचे का ब्योरा देती है। इस प्रावधान के अनुसार, यदि अधिनियम के तहत कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया जाता है, तो कंपनी के साथ-साथ कंपनी के मामलों के प्रभारी व्यक्तियों को भी दोषी माना जाता है और मुकदमा चलाया जा सकता है और सजा दी जा सकती है। हालांकि, यह दायित्व पूर्ण नहीं है; इसमें उन लोगों की सुरक्षा के प्रावधान शामिल हैं जो अपने ज्ञान की कमी को साबित कर सकते हैं या अपराध को रोकने में उचित परिश्रम का प्रदर्शन कर सकते हैं।
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं पर अटिका गोल्ड प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक के रूप में मुकदमा चलाया जा रहा था। उनके खिलाफ आरोप कंपनी की ओर से परोक्ष दायित्व पर आधारित थे। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत में आरोपी इकाई के रूप में कंपनी की अनुपस्थिति थी।
आर कल्याणी बनाम जनक सी मेहता और अन्य [(2009) 1 एससीसी 516] और अनीता हाडा बनाम गॉडफादर ट्रेवल्स एंड टूर्स प्राइवेट लिमिटेड [(2012) 5 एससीसी 661] में सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने परोक्ष दायित्व को जिम्मेदार ठहराने में कानूनी कल्पना की आवश्यकता को रेखांकित किया। यह माना गया कि वैधानिक प्रावधानों के अनुसार परोक्ष दायित्व केवल तभी लगाया जा सकता है जब कंपनी और आरोपी व्यक्तियों दोनों के खिलाफ कानूनी कल्पना का निर्माण किया गया हो, यदि उन्हें कंपनी के कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना हो।
नतीजतन, हाईकोर्ट ने माना कि कंपनी को एक पक्ष के रूप में नामित किए बिना, कथित अपराधों के लिए याचिकाकर्ताओं पर मुकदमा चलाना अस्थिर हो जाता है। इसलिए, हाईकोर्ट ने आपराधिक शिकायत में कार्यवाही रद्द कर दी।
केस टाइटल: पदपारा पट्टी सैयद बाशा आयस्ब और अन्य बनाम श्रम विभाग, कर्नाटक सरकार कार्यालय में श्रम अधिकारी और अन्य।
केस संख्या: रिट याचिका संख्या 14973/2023 (जीएम-आरईएस)