जज के विवादित वीडियो के बाद, लोगों और सोशल मीडिया को लाइवस्ट्रीम वीडियो का उपयोग करने से रोकने की मांग को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका

Update: 2024-09-23 08:34 GMT

एडवोकेट एसोसिएशन बेंगलुरु ने अपने अध्यक्ष विवेक सुब्बा रेड्डी के माध्यम से सोमवार को कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र को तत्काल उचित आदेश पारित करने का निर्देश देने की मांग की जिसमें सभी सोशल-मीडिया, व्यक्तियों, वीडियो-निर्माताओं, मीडिया एजेंसियों और आम जनता को लाइव स्ट्रीम किए गए वीडियो का उपयोग/संपादन/मॉर्फिंग या अवैध रूप से अदालती कार्यवाही का उपयोग करने से रोका जाए।

जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल न्यायाधीश पीठ के समक्ष याचिका का उल्लेख किया गया, जो मंगलवार को मामले की सुनवाई कर सकती है।

एसोसिएशन ने यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर और अन्य को यह निर्देश देने की मांग की कि वे यूट्यूब चैनलों - कहले न्यूज, फैन्स ट्रोल और अन्य या किसी अन्य द्वारा अदालत की कार्यवाही का उपयोग करके बनाए गए सभी वीडियो/क्लिप/शॉर्ट्स को तत्काल प्रभाव से हटा दें।

इसके अलावा यह भी मांग की गई कि अधिकारियों को न्याय और समानता के उद्देश्य से लाइव स्ट्रीम किए गए वीडियो का दुरुपयोग करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ उचित आपराधिक कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया जाए।

हाईकोर्ट के जज जस्टिस वी श्रीशानंद के दो वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर सामने आए, जिसमें वे आपत्तिजनक टिप्पणी करते नजर आए। एक वीडियो में वे बेंगलुरु के एक इलाके को पाकिस्तान कहते नजर आए। दूसरे वीडियो में वे एक महिला वकील पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते नजर आए।

इस पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से प्रशासनिक निर्देश प्राप्त करने के बाद सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

उक्त मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर को होगी।

प्रमुख वकीलों सहित कई सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने हाईकोर्ट जज की टिप्पणियों की आलोचना की, जिन्हें लाइव स्ट्रीम किया गया था।

याचिका में कहा गया कि वीडियो ने जनता के बीच बहुत लोकप्रियता हासिल की है। इसने आम आदमी को न केवल न्यायपालिका बल्कि वकालत जैसे महान पेशे की भी अनुचित तरीके से आलोचना करने का मौका दिया, जिसकी समाज के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। जब ये वीडियो प्रसारित होते हैं तो वे विशेष रूप से बार के युवा सदस्यों को नुकसान पहुंचाते हैं, जो संवैधानिक न्यायालयों के समक्ष उपस्थित होकर कानूनी पेशे की बारीकियों और पेचीदगियों को सीखने के लिए जुनूनी होते हैं।

इसके अलावा यह भी कहा गया,

"युवा नवोदित वकील इस तथ्य के प्रति सचेत हो रहे हैं कि उन्हें उनके प्रस्तुतीकरण/तर्कों के लिए ट्रोल किया जा सकता है। इस प्रकार बड़े पैमाने पर पेशे के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो रहा है, खासकर जब हम अच्छे और कुशल मुकदमेबाजी करने वाले वकीलों की कमी का सामना कर रहे हैं।”

दावा किया गया कि वीडियो बनाने वालों और लाइव प्रसारण का दुरुपयोग करने वाले बदमाशों का कृत्य कानून की नज़र में अत्यधिक मनमाना, अवैध, विकृत और अस्थिर है।

याचिका में यह भी कहा गया कि वैवाहिक मामलों की ट्रोलिंग और लाइव स्ट्रीमिंग भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। इसलिए दोषी व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

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