झारखंड हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान 'गुंडागर्दी' को लेकर वकील के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियां खारिज की, उनकी माफी स्वीकार की

Update: 2025-10-16 10:51 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने एक वकील के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को खारिज किया, जिन्होंने पिछले महीने अग्रिम ज़मानत मामले में बहस करते हुए "तेज़ आवाज़ में भाषण" दिया था और यह कहते हुए "अदालत को आदेश पारित करने की धमकी" दी थी कि वह इसे चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने अपने 25 सितंबर के आदेश में कहा कि यह एक ऐसा मामला है, जहां "अदालत में न्याय के समुचित प्रशासन में बाधा डालने का प्रयास किया गया" और इस तरह का हस्तक्षेप "अदालत को बदनाम करने" के समान है। उन्होंने आगे कहा कि यह "जज पर हमला" है, जिसकी अवमानना ​​के रूप में सजा दी जानी चाहिए।

अदालत ने कहा कि अगर वकील को बिना किसी रोक-टोक के जाने दिया जाता है तो समाज में यह संदेश जाएगा कि "अगर इस तरह की गुंडागर्दी खुली अदालत में की जाती है तो जजों को रोका जा सकता है।"

हालांकि, अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष और सचिव सहित बार के सदस्यों ने न्यायालय से अनुरोध किया कि उन्हें एक अवसर प्रदान करके और उनके विरुद्ध आपराधिक अवमानना ​​का मामला न चलाकर नरम रुख अपनाया जाए, इसलिए अदालत ने मामले को झारखंड राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष के पास भेज दिया।

इसके बाद वकील ने "बिना शर्त और बिना शर्त माफ़ी" मांगते हुए 25 सितंबर के आदेश में संशोधन की मांग करते हुए याचिका दायर की। वकील ने यह भी वचन दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा किसी भी अदालत के समक्ष ऐसा कृत्य दोबारा नहीं दोहराया जाएगा। साथ ही यह भी कहा कि उनकी माफ़ी स्वीकार की जाए और झारखंड राज्य बार काउंसिल के आदेश पर उन्हें उक्त आदेश के परिणामों का सामना करने से छूट दी जाए।

क्षमा याचना पर ध्यान देते हुए अदालत ने अपने आदेश में कहा:

"उपर्युक्त अग्रिम ज़मानत आवेदन (एबीए) में दिनांक 25.09.2025 का आदेश इस आधार पर पारित किया गया कि आपराधिक अवमानना ​​का कानून अदालत में जनता के विश्वास की रक्षा और उसे बनाए रखने से संबंधित है। मुख्यतः इसी कारण से आपराधिक अवमानना ​​का कानून औचित्य की दलील देने से मना करता है। यह स्पष्ट है कि एक बार ऐसी दलील देने की अनुमति दे दी जाए तो न्यायालयों की निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा में जनता का विश्वास बनाने और बनाए रखने के बजाय यह वादियों को विवाद खड़ा करने और कीचड़ उछालने का अवसर देगा, जिससे अंततः अदालत में वही विश्वास और भरोसा खत्म हो जाएगा, जिसकी रक्षा आपराधिक अवमानना ​​द्वारा की जाती है। यही कारण है कि आपराधिक अवमानना, आपराधिक मानहानि के सामान्य कानून से स्पष्ट रूप से भिन्न है। इसी पृष्ठभूमि में उक्त आदेश पारित किया गया।"

हालांकि, अदालत ने नोट किया कि वकील ने ईमानदारी से क्षमा याचना की है, जो अदालत के लिए संतोषजनक है, साथ ही ऐसा कृत्य दोबारा न दोहराने का वचन भी दिया है।

अदालत ने कहा,

"इस मामले में जिस नेक इरादे से माफ़ी मांगी गई, वह पूरी तरह से संतुष्ट है। वकील संघ के अध्यक्ष और सचिव तथा बार के अन्य सदस्यों ने सामूहिक रूप से पूरे मामले पर खेद व्यक्त किया। ऐसी स्थिति में वकील राकेश कुमार द्वारा दी गई माफ़ी को अदालत उसी भावना से स्वीकार करती है, जिस भावना से उन्होंने दी है। अपराध या गलत के लिए सज़ा की सकारात्मक, लेकिन सीमित भूमिका होती है और किसी सामाजिक कुप्रथा को केवल कानूनी सज़ा देकर समाप्त नहीं किया जा सकता। अदालत की अवमानना ​​करने वाले को सज़ा देने का उद्देश्य क़ानून के शासन को बनाए रखना और न्याय प्रशासन में लोगों का विश्वास बनाए रखना है।"

मामले को बंद करते हुए अदालत ने वकील की माफ़ी स्वीकार की और कहा कि उन्हें एक मौका मिलना चाहिए।

अदालत ने आगे कहा,

"चूंकि माफ़ी स्वीकार कर ली गई है, इसलिए 25.09.2025 के आदेश में याचिकाकर्ता के विरुद्ध की गई प्रतिकूल टिप्पणी को हटाया जाता। झारखंड राज्य बार काउंसिल से अनुरोध है कि वह याचिकाकर्ता के विरुद्ध आगे कोई कार्यवाही न करे, क्योंकि इस न्यायालय ने बिना शर्त माफ़ी स्वीकार कर ली है।"

इसके साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया गया।

Case title: Rakesh Kumar v/s The State of Jharkhand and others

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