निजी मेडिकल लापरवाही की शिकायत आरोपों का समर्थन करने वाले किसी अन्य डॉक्टर की विशेषज्ञ राय के बिना सुनवाई योग्य नहीं: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2024-07-10 09:55 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी डॉक्टर के खिलाफ निजी शिकायत पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता, जब तक कि आरोपी द्वारा मेडिकल लापरवाही का संकेत देने वाले किसी अन्य डॉक्टर की विश्वसनीय राय द्वारा समर्थित प्रथम दृष्टया सबूत न हों।

जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की एकल पीठ ने कहा,

"यह बिल्कुल स्पष्ट है कि निजी शिकायत पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता, जब तक कि शिकायतकर्ता ने आरोपी डॉक्टर की ओर से लापरवाही के आरोप का समर्थन करने के लिए किसी अन्य डॉक्टर द्वारा दी गई विश्वसनीय राय के रूप में प्रथम दृष्टया सबूत पेश नहीं किए हों। ऐसा प्रतीत होता है कि कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"

यह फैसला तब आया, जब न्यायालय आरोपी डॉक्टर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304-ए के तहत अपराध के लिए संज्ञान लेने के आदेश सहित आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका पर विचार कर रहा था।

मृतक महिला के छोटे बेटे शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी डॉक्टरों द्वारा गंभीर मेडिकल लापरवाही के कारण उसकी मां की मृत्यु हो गई।

2011 में मृत महिला को कमजोरी और पेशाब करने में कठिनाई का अनुभव हुआ, जिसके कारण उसे अस्पताल ले जाया गया। याचिकाकर्ता से परामर्श करने के बाद उसे मूत्र पथ के संक्रमण के लिए CCU में भर्ती कराया गया। याचिकाकर्ता ने कुछ दवाएं निर्धारित कीं और उसके उच्च रक्त शर्करा के कारण इंसुलिन देने का सुझाव दिया।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अस्पताल ने सीमित देखभाल और सहायता प्रदान की मुख्य रूप से ऐसी दवाएं निर्धारित कीं, जिन्हें संबद्ध दुकान से खरीदना पड़ा। इसके अतिरिक्त अस्पताल ने मरीज की मृत्यु के बाद भी कुछ शुल्क लिया और शिकायतकर्ता को मृत्यु के सही कारण के बारे में पता नहीं था

मृतक के मेडिकल रिकॉर्ड की समीक्षा करने पर शिकायतकर्ता ने कहा कि उसे पता चला कि उसकी मां की मृत्यु अत्यधिक इंसुलिन के प्रशासन से हुई। इसके अलावा ग्लूकोज के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला उपकरण दोषपूर्ण था, जिसके परिणामस्वरूप रक्त शर्करा की रीडिंग गलत थी।

नतीजतन याचिकाकर्ता डॉक्टर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।

न्यायालय ने जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य, (2005) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसने आपराधिक लापरवाही या मेडिकल लापरवाही के आरोपी डॉक्टरों पर मुकदमा चलाने के लिए दिशानिर्देश स्थापित किए।

इसके अतिरिक्त न्यायालय ने मार्टिन एफ. डी. सूजा बनाम एम.डी. इश्फाक, (2009) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें मेडिकल लापरवाही के दावों का आकलन करते समय सक्षम डॉक्टर या संबंधित चिकित्सा क्षेत्र में विशेषज्ञता वाले डॉक्टरों की समिति से परामर्श करने के महत्व पर जोर दिया गया।

नतीजतन न्यायालय ने याचिका स्वीकार की और याचिकाकर्ता डॉक्टर के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही खारिज कर दी।

केस टाइटल- डॉ. सुमन कुमार पाठक @ डॉ. एस.के. पाठक बनाम झारखंड राज्य

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