आवेदन राहत को उचित ठहराता है तो न्यायालय स्पष्ट रूप से उपशमन रद्द करने की दलील के बिना भी प्रतिस्थापन याचिका को अनुमति दे सकता है: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि आवश्यक निहितार्थ द्वारा उपशमन रद्द करने की विशिष्ट दलील के बिना भी प्रतिस्थापन याचिका को अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते कि संपूर्ण आवेदन ऐसी राहत के लिए मामला बनाता हो।
इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा,
"ऐसे मामले में जहां उपशमन को रद्द करने की राहत का विशेष रूप से दावा नहीं किया गया, न्यायालय संपूर्ण आवेदन पर विचार कर सकता है। यह पता लगा सकता है कि प्रार्थना क्या है और यदि मामला क्षमा करने और उपशमन कार्यवाही रद्द करने के लिए बनाया गया है तो न्यायालय देरी को माफ कर सकता है, विशिष्ट प्रार्थना के बिना भी मुकदमे के उपशमन को रद्द कर सकता है।"
न्यायालय ने कहा,
"यदि आवेदन में दिए गए तथ्यों के आधार पर मामला बनता है तो किसी एक पक्ष के कानूनी प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने से छूट दी जा सकती है। इसे उपशमन को रद्द करने के लिए आवेदन के रूप में माना जा सकता है, जो मुकदमे में मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड पर लेने की छूट मांगने की प्रार्थना के भीतर ही प्रार्थना है।"
उपरोक्त निर्णय ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश रद्द करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका में आया।
जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया दो प्रतिवादियों की ओर से दायर उक्त प्रतिस्थापन याचिका पहले ही समाप्त हो चुकी थी और चूंकि उपशमन रद्द करने की कोई प्रार्थना नहीं थी, इसलिए प्रतिस्थापन की अनुमति देने वाला ट्रायल कोर्ट का निर्णय अवैध था।
न्यायालय ने दोहराया कि इस आवेदन की प्रकृति तय करने के लिए केवल टाइटल निर्णायक नहीं है।
इसमें कहा गया,
"ऐसा प्रतीत होता है कि आदेश 22 नियम 3 या 4 सीपीसी के तहत राहत के लिए समेकित आवेदन दाखिल करने और आदेश 22 नियम 9 सीपीसी के तहत एक और आवेदन दाखिल करने तथा सीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत देरी की माफी के लिए कोई रोक नहीं है।"
केस टाइटल: भूदेव चौधरी बनाम मुक्ता चौधरी और अन्य