झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने रक्षा कर्मियों और उनके परिवारों के लिए कानूनी सेवा क्लीनिकों का उद्घाटन किया
झारखंड राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (JHALSA) ने पिछले सप्ताह NALSA वीर परिवार सहायता योजना 2025 के तहत राज्य के सभी जिलों में रक्षा कर्मियों, पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों के लिए कानूनी सेवा क्लीनिकों का उद्घाटन किया।
झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और JHALSA के मुख्य संरक्षक जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने 13 सितंबर को रांची में कार्यक्रम में इन क्लीनिकों का वर्चुअली उद्घाटन किया।
यह न्यायपालिका की एक विनम्र श्रद्धांजलि'
इस अवसर पर बोलते हुए चीफ जस्टिस ने कहा,
"बहादुरों, दिग्गजों और उनके परिवारों के लिए कानूनी सेवा क्लीनिक सिर्फ औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक गंभीर प्रतिज्ञा है। यह न्यायपालिका की उन लोगों के लिए एक विनम्र श्रद्धांजलि है, जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित किया।"
उन्होंने आगे कहा कि झारखंड की न्यायपालिका हमारे सैनिकों के साथ मजबूती से खड़ी है।
इस कार्यक्रम में झालसा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद, जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी, जस्टिस संजय प्रसाद, मेजर जनरल सज्जन सिंह मान (जीओसी, 23 इन्फैंट्री डिवीजन) और ब्रिगेडियर राज कुमार भी उपस्थित थे।
इन क्लीनिकों के साथ ही वीर परिवार सहायता योजना के तहत 90-दिवसीय अभियान भी शुरू किया गया। इसका उद्देश्य व्यापक जागरूकता पैदा करना और अधिकतम लाभार्थियों की पहचान करना है ताकि उन्हें तत्काल राहत प्रदान की जा सके।
JHALSA की सदस्य सचिव कुमारी रंजना अस्थाना ने बताया कि इस अभियान का लक्ष्य रक्षा कर्मियों, पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को हर संभव कानूनी सहायता प्रदान करना है। मेजर जनरल सज्जन सिंह मान ने इस पहल को रक्षा कर्मियों और उनके परिवारों के कल्याण के लिए एक ऐतिहासिक पहल बताया।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद ने कहा कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कानूनी सहायता की जरूरत वाले लाभार्थियों तक तत्काल राहत पहुंचे। उन्होंने जोर देकर कहा कि इसका उद्देश्य न केवल सेवारत सेना कर्मियों और उनके आश्रितों को कानूनी सहायता प्रदान करना है बल्कि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 39ए के तहत उनके कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के बारे में जागरूक करना भी है।
इसी के समानांतर राज्य भर में राष्ट्रीय लोक अदालत का भी आयोजन किया गया। इस दौरान 288 बेंचों का गठन किया गया, जिसमें 1,901,846 मुकदमे-पूर्व और 160,032 लंबित मामलों का निपटारा किया गया। इन निपटारों से कुल 9,24,93,44,880 रुपये का समझौता हुआ।