झारखंड हाईकोर्ट ने जज के साथ तीखी बहस करने वाले वकील के खिलाफ शुरू किया आपराधिक अवमानना मामला
झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार (17 अक्टूबर) को वकील के खिलाफ स्वतः संज्ञान से आपराधिक अवमानना का मामला शुरू किया, जो गुरुवार को अदालती कार्यवाही के दौरान वीडियो क्लिप में सिंगल जज के साथ तीखी बहस करते हुए दिखाई दे रहा था।
चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान, जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद, जस्टिस रोंगोन मुखोपाध्याय, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस राजेश शंकर की पांच जजों की पीठ ने स्वतः संज्ञान से अवमानना मामले की सुनवाई की।
हाईकोर्ट की वेबसाइट पर मामले की जानकारी के अनुसार, मामले की सुनवाई 11 नवंबर के लिए सूचीबद्ध की गई।
बता दें, गुरुवार को वकील एक महिला का बिजली कनेक्शन काटने से संबंधित मामले में पेश हुए थे, जिसने बिजली बिल का भुगतान नहीं किया था। अदालत ने अपने आदेश में निर्देश दिया कि यदि "याचिकाकर्ता बिजली बिल के रूप में 50,000 रुपये (पचास हज़ार रुपये) जमा करता है तो प्रतिवादी नंबर 2 को निर्देश दिया जाता है कि वह राशि जमा होने के 24 घंटे के भीतर याचिकाकर्ता का बिजली कनेक्शन बहाल कर दे।"
हाईकोर्ट के यूट्यूब चैनल पर कार्यवाही के लाइव प्रसारण के अनुसार, सुनवाई के दौरान वकील ने मानवीय आधार पर कुछ रियायत की मांग की थी।
"माई लॉर्ड, जो भी होगा, हम पैसा जमा कर देंगे। वह एक वृद्ध और कमज़ोर महिला हैं। अब वह वहां नहीं रह सकतीं। पानी नहीं आ रहा है, कुछ नहीं आ रहा है। कम से कम 25,000 रुपये। बाकी हम जमा कर देंगे। यह एक महीने का बिल नहीं है। यह 4-5 साल से चल रहा है।"
अदालत ने मौखिक रूप से कहा,
"यह एक बिल है। यह एक व्यावसायिक लेनदेन है। आपको इसके लिए भुगतान करना होगा।"
इस पर वकील ने कहा कि यह कानून के अनुसार होना चाहिए।
उन्होंने कहा,
"फिलहाल यह ज़रूरत का मामला है। बिजली के बिना कोई व्यक्ति एक मिनट भी नहीं रह सकता।"
इस पर अदालत ने मौखिक रूप से कहा,
"आपने कल इस मामले का ज़िक्र किया था, यह आज सूचीबद्ध है। मैं पहले ही कह चुका हूं। हम क़ानून की अदालत हैं, न्याय की अदालत नहीं। क़ानून की अदालत, अगर आप गणनाएं दिखा सकते हैं और कह सकते हैं कि हमारे अनुसार यह बिल है... यह बिल ग़लत है। तो स्वीकार किए गए दावे के अनुसार हम ऐसा कर सकते थे। वे दलीलें मौजूद नहीं हैं... मैं कोई आदेश नहीं दे सकता... हवा में थोड़ी कर देंगे... कोई आधार तो होना ही चाहिए... 50% आधार एक घोषित मिसाल है, जिसका पालन किया जाता है, हम उसका पालन करेंगे।"
इस पर वकील ने कहा,
"अगर यह (बिल) 1 लाख रुपये हो सकता है तो 1 लाख रुपये। 50,000 हम कहीं से भी जुगाड़ कर लेंगे।
अदालत ने कहा,
"जुगाड़?...आप ऐसी बात मत बोलिए। यह दया की अदालत नहीं है। मैं दया की अदालत नहीं हूं...ठीक है, 50,000 ही रहने दीजिए।"
इसके बाद अदालत ने आदेश पारित किया कि अगर राशि जमा हो जाती है तो अधिकारियों को 24 घंटे के भीतर बिजली बहाल करने का निर्देश दिया जाता है।
इसके बाद अदालत ने एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से कहा,
"आप खड़े होकर कहते हैं कि विधवा हैं, गरीब हैं, कोई दलील नहीं...अगर हम स्टे नहीं देंगे तो आनाय कर देंगे...यह कैसी बहस चल रही है? हम अन्याय कर रहे हैं? अगर मैं केस खारिज कर रहा हूं तो बहुत बड़ा अन्याय हो रहा है, यही दलील है? और चेयरमैन साहब बैठ के सुनते हैं। बार काउंसिल के अध्यक्ष को नोटिस देना पड़ेगा..."
इसके बाद जज ने स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष को संबोधित करते हुए कहा,
"आपके वकील इस तरह से केस लड़ेंगे?"
इस पर वकील बेंच के पास गए और कहा,
"माई लॉर्ड, आप मुझे बता रहे हैं? मैं अपने तरीके से बहस कर सकता हूं। आपके तरीके से नहीं, जैसा आप कहते हैं... कृपया ध्यान दें।"
इस पर जज ने कहा,
"आप यह नहीं कह सकते कि अदालत अन्याय कर रही है। वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है।"
इस पर वकील ने कहा,
"मैंने आपके सामने सिर्फ़ प्रार्थना की थी। किसी भी वकील को अपमानित करने की कोशिश न करें।"
इसके बाद जज ने कहा,
"यह एक जज के अपमान का मामला है।"
फिर वकील ने कहा,
"कृपया किसी को अपमानित करने की कोशिश न करें। देश जल रहा है... न्यायपालिका के साथ। ये मेरे शब्द हैं। किसी भी वकील को अपमानित करने की कोशिश न करें। आप बहुत ज़्यादा जानते हैं, आप जज हो गए। हम लोग नहीं जानते हम लोग वकील हैं।
जज ने कहा,
"लेकिन आपको सही तरीके से बहस करनी होगी।"
इस पर वकील ने कहा,
"मैं अपनी तरह से बहस करूंगा। हद मत पार करो। कृपया हद मत पार करो। मैं पिछले 40 सालों से वकालत कर रहा हूं।"
इसके बाद जज ने कहा,
"चीफ जस्टिस से मेरा रोस्टर बदलने का अनुरोध है।"
Case title: COURT ON ITS OWN MOTION VS MAHESH TEWARI