प्रमोशन कर्मचारी का अंतर्निहित अधिकार नहीं, प्रमोशन के लिए विचार किए जाने का अधिकार तब प्राप्त होता है, जब जूनियर पर विचार किया जाता है: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2024-08-20 05:27 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रमोशन किसी कर्मचारी का अंतर्निहित अधिकार नहीं है लेकिन प्रमोशन के लिए विचार किए जाने का अधिकार तब उत्पन्न होता है, जब जूनियर पर विचार किया जाता है।

याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर कर प्रतिवादी-राज्य को असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर प्रमोशन के लिए उसके मामले की समीक्षा करने का निर्देश देने की मांग की थी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पदोन्नति के लिए पात्र होने के बावजूद उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) की अनुपस्थिति के कारण उसके आवेदन पर विचार नहीं किया गया, जिसने विभागीय पदोन्नति समिति को उसके मामले का मूल्यांकन करने से रोक दिया।

याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि एसीआर को बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य/विभाग की है, कर्मचारी की नहीं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दावा किया कि उनका पूरा सेवा रिकॉर्ड अनुकरणीय है। इसलिए उन्होंने अनुरोध किया कि प्रतिवादी-राज्य को निर्देश दिया जाए कि वह उनकी पदोन्नति पर उस तिथि से विचार करे जिस तिथि पर उनके जूनियर को प्रमोट किया गया था।

इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस दीपक रोशन ने कहा,

"यह न्यायालय इस बात पर विचार करता है कि यद्यपि प्रमोशन किसी कर्मचारी का अधिकार नहीं है लेकिन विचार का अधिकार तब अर्जित होता है, जब संबंधित कर्मचारी से जूनियर को प्रमोशन के लिए विचार किया जाता है। प्रतिवादियों ने केवल एसीआर की अनुपलब्धता के आधार पर याचिकाकर्ता के मामले पर विचार नहीं किया है। बेशक, एसीआर का संरक्षक विभाग/राज्य है और उसे एसीआर को कर्मचारी के पास नहीं रखना चाहिए। प्रतिवादियों का यह भी मामला नहीं है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी की गई है।"

जस्टिस रोशन ने प्रतिवादी-राज्य को निर्देश दिया कि यदि कोई अन्य कानूनी बाधा नहीं है, तथा याचिकाकर्ता द्वारा सहायक अभियंता के पद पर पदोन्नति के लिए सभी पात्रता मानदंडों को पूरा करने के अधीन उसके कनिष्ठों को सहायक अभियंता के पद पर पदोन्नत किए जाने की तिथि से याचिकाकर्ता के पदोन्नति के मामले पर विचार किया जाए।"

उन्होंने यह भी आदेश दिया कि आदेश प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर प्रक्रिया पूरी कर ली जाए।

तदनुसार, रिट याचिका को अनुमति दी गई।

केस टाइटल- दया राम बनाम झारखंड राज्य

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