HAMA | विधवा बहू ससुर और देवर से भरण-पोषण मांग सकती है: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2025-07-04 05:50 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि विधवा बहू और उसके नाबालिग बच्चे हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धारा 19 और 22 के तहत अपने ससुर और देवर से भरण-पोषण का दावा करने के हकदार हैं, बशर्ते कि वे खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हों और ससुराल वालों के पास सहदायिक संपत्ति हो।

जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने ससुर और देवर द्वारा फैमिली कोर्ट के खिलाफ दायर अपील खारिज की, जिसमें उन्हें विधवा को 3000 रुपये और उसके दो नाबालिग बच्चों को 1000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।

खंडपीठ ने कहा,

“फैमिली कोर्ट ने प्रत्येक दस्तावेज और दोनों पक्षकारों के गवाहों की गवाही की सराहना की और स्पष्ट रूप से देखा कि याचिकाकर्ताओं (प्रतिवादी) और प्रतिवादियों (अपीलकर्ताओं) के बीच कृषि भूमि का बंटवारा नहीं हुआ। साथ ही कृषि भूमि में याचिकाकर्ता नंबर 1 (प्रतिवादी नंबर 1) के पति का हिस्सा भी प्रतिवादियों (अपीलकर्ताओं) के कब्जे में है, लेकिन याचिकाकर्ताओं का भरण-पोषण प्रतिवादियों द्वारा नहीं किया जा रहा है। इसलिए हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा-19 और 22 के आधार पर याचिकाकर्ता प्रतिवादियों से भरण-पोषण पाने के हकदार हैं।”

मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार, विधवा और उसके बच्चे अपने वैवाहिक घर से निकाले जाने के बाद अपने पैतृक घर में रह रहे है। ट्रायल कोर्ट ने पाया कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। प्रतिवादियों के पास संयुक्त कृषि भूमि है, जिसका बंटवारा नहीं हुआ है। कथित तौर पर प्रतिवादी विधवा और उसके बच्चों का भरण-पोषण नहीं कर रहे थे, जबकि उनके पास ऐसा करने के साधन हैं।

अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि विधवा को LIC की आय प्राप्त हुई, उनमें से एक दिव्यांग बुजुर्ग व्यक्ति है और दूसरा स्टूडेंट हैं। वे याचिकाकर्ताओं को वैवाहिक घर में रहने की अनुमति देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने अधिनियम की धारा 19 और 22 की प्रयोज्यता को भी चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि फैमिली कोर्ट ने प्रावधानों की गलत व्याख्या की थी।

हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि विधवा ने खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थता साबित की और अन्य वैधानिक शर्तें पूरी की गई।

न्यायालय ने कहा, ​​

“हम पाते हैं कि यद्यपि विधवा/याचिकाकर्ता (प्रतिवादी नंबर 1) ने दलील दी है और साबित किया कि वह अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। फिर भी खंड (ए) और (बी) में उल्लिखित वैधानिक शर्तों को पूरा करने के लिए विशिष्ट बयान है, जो 1956 के अधिनियम की धारा 19 की उपधारा (1) के प्रावधान हैं। गवाहों के बयान भी हैं, जो पुष्टि करते हैं कि वह अपने पिता या माता से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है क्योंकि उसके पिता कमाते नहीं हैं।”

तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।

Case Title: Surendra Das & Anr. v. Anita Das & Ors.

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