अब कोई ढिलाई नहीं: अवैध पशु वध और मांस बिक्री पर झारखंड हाईकोर्ट की सख्त चेतावनी

Update: 2025-12-27 08:21 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अवैध पशु वध और मांस की अवैध बिक्री पर कड़ा रुख अपनाने का निर्देश देते हुए कहा कि अब इस मामले में किसी भी तरह की दिली-डैलीइंग (अनावश्यक टालमटोल) बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 तथा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के प्रावधानों का अक्षरशः पालन सुनिश्चित किया जाए।

चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ रांची में अवैध रूप से पशुओं, विशेषकर मुर्गी पक्षियों, के वध और सार्वजनिक सड़कों पर पशु शवों के प्रदर्शन के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी।

अदालत ने इससे पहले 12 दिसंबर, 2025 के आदेश में स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव, नगर विकास एवं आवास विभाग के सचिव तथा रांची नगर निगम के प्रशासक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों से विस्तार से बातचीत की। अधिकारियों ने अदालत को आश्वासन दिया कि सभी प्रासंगिक कानूनों, नियमों और अदालत के निर्देशों को पूरी गंभीरता से लागू किया जाएगा तथा आवश्यक नियमावली दो माह के भीतर तैयार कर ली जाएगी।

हाईकोर्ट ने कहा कि तब तक अंतरिम अवधि में भी सभी लागू कानूनों और पूर्व में जारी निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाए। अदालत ने दोहराया कि मटन विक्रेता केवल वही व्यक्ति हो सकते हैं, जिनके पास खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत वैध पंजीकरण या लाइसेंस हो। किसी भी अनधिकृत व्यक्ति को मांस बिक्री की अनुमति नहीं दी जा सकती।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मांस की बिक्री तभी हो सकती है, जब पशु क्रूरता निवारण (स्लॉटर हाउस) नियम, 2001 और खाद्य सुरक्षा एवं मानक विनियम, 2011 विशेष रूप से अनुसूची IV का पूर्ण पालन किया जाए। किसी भी उल्लंघन पर “गंभीर परिणाम” भुगतने की चेतावनी दी गई।

मामले की पृष्ठभूमि

यह जनहित याचिका खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लाइसेंसिंग एवं पंजीकरण) विनियम, 2011 के प्रवर्तन की मांग को लेकर दायर की गई। याचिका में खास तौर पर उस प्रावधान का हवाला दिया गया, जो दुकानों के भीतर पशु या पक्षियों के वध पर रोक लगाता है और मांस की दुकानों के लिए स्वच्छता व स्थान संबंधी सख्त मानक तय करता है। इसके साथ ही पशु क्रूरता निवारण (स्लॉटर हाउस) नियम, 2001 के नियम 6 के अनुपालन की मांग की गई, जिसमें अन्य पशुओं के सामने वध पर प्रतिबंध है।

इससे पहले 11 मार्च, 2024 को हाईकोर्ट ने राज्यभर में जिला उपायुक्तों, पुलिस अधीक्षकों और स्थानीय निकायों को निरीक्षण कर कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिए। 2 जुलाई, 2024 के आदेश में अदालत ने अधिकारियों की उदासीनता पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यदि प्रशासन सतर्क रहे, तो लाइसेंस जारी कर राजस्व भी बढ़ाया जा सकता है।

28 नवंबर, 2025 को अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिकारी अदालत के आदेशों के क्रियान्वयन में “सिर्फ टालमटोल कर रहे हैं”। इसके बाद एक सप्ताह का समय देते हुए चेतावनी दी गई कि अनुपालन न होने पर अधिकारियों को न केवल व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ेगा, बल्कि उनके कार्य-प्रणाली पर प्रतिकूल टिप्पणी भी की जा सकती है।

ताजा आदेश इन्हीं पूर्व निर्देशों की कड़ी में पारित किया गया।

मामले की अगली सुनवाई 27 फरवरी, 2025 को निर्धारित की गई।

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