'राजनीतिक प्रतिशोध का हवाला देकर गड़बड़ी से नहीं बच सकते': झारखंड हाईकोर्ट ने ED गिरफ्तारी के खिलाफ हेमंत सोरेन की याचिका खारिज की
झारखंड हाईकोर्ट ने भूमि 'घोटाला' मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह "राजनीतिक प्रतिशोध का हव्वा खड़ा करके जो गड़बड़ी उन्होंने पैदा की है, उससे बाहर नहीं निकल सकते।"
एक्टिंग चीफ जस्टिस चन्द्रशेखर और जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने सोरेन की याचिका खारिज करते हुए कहा,
"याचिकाकर्ता ने अपने दिल्ली आवास से भारी नकदी की बरामदगी और 36 से अधिक नकदी रखने के लिए अपने माता-पिता की बीमारी का बहाना बनाने से इनकार नहीं किया। इस स्थिति में तकनीकी याचिका दायर करके याचिकाकर्ता राजनीतिक प्रतिशोध का हव्वा खड़ा करके पैदा की गई गड़बड़ी से बाहर नहीं निकल सकता है।"
खंडपीठ ने आगे कहा,
"इस स्तर पर यह मानना संभव नहीं है कि ED ने बिना किसी कारण के याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की। यदि याचिकाकर्ता के खिलाफ अभियोजन रिपोर्ट दायर की जाती है तो ED द्वारा एकत्र की गई सामग्रियों की स्वीकार्यता या अन्यथा की जांच विशेष अदालत द्वारा की जा सकती है। एएसजी ने सही तर्क दिया कि PMLA Act के तहत योजना इस स्तर पर मिनी ट्रायल पर विचार नहीं करती।''
28 फरवरी को सुनवाई के बाद अदालत ने ED की गिरफ्तारी की कार्रवाई के खिलाफ सोरेन की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अपनी याचिका में सोरेन ने दावा किया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) का बार-बार समन दुर्भावना से प्रेरित है और झारखंड में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने की राजनीतिक साजिश का घटक है।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि उनके पत्राचार और उनकी संपत्ति, बैंक अकाउंट और पैन नंबर के बारे में विस्तृत जानकारी के प्रावधान के बावजूद, ED ने उनके जवाबों को नजरअंदाज करते हुए समन जारी करना जारी रखा।
ED के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए सोरेन ने 15 साल से अधिक समय पहले अर्जित संपत्तियों की नई जांच शुरू करने पर चिंता जताई, जिसे पहले आयकर प्राधिकरण ने कानूनी रूप से प्राप्त माना।
सोरेन ने अदालत में तर्क दिया कि BJP ने उन विपक्षी नेताओं के खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध लेने की अपनी रणनीति के तहत उनकी गिरफ्तारी की, जो 'इंडिया अलायंस' बनाने के लिए एक साथ आए थे, जिसमें वह और उनकी पार्टी सक्रिय सदस्य थे।
हालांकि, मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, ED ने तर्क दिया कि सोरेन ने अपने अधिकार और पद का दुरुपयोग करते हुए समन प्राप्त करने के बाद सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास किया।
ED ने कथित भूमि घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 31 जनवरी को सोरेन को हिरासत में लिया। 13 दिन की हिरासत अवधि के बाद उन्हें 15 फरवरी से रांची की बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में रखा गया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा,
“यह याचिकाकर्ता द्वारा दायर किया गया मामला नहीं है कि गवाहों को PMLA Act की धारा 50 के तहत अपना बयान देने के लिए मजबूर किया गया; बहस तक नहीं की। याचिकाकर्ता का यह भी कहना नहीं है कि ED द्वारा प्रस्तुत सामग्री वास्तविक नहीं है। संपत्ति विलेख और राजस्व रिकॉर्ड की हेराफेरी और हेराफेरी रिकॉर्ड के मामले हैं और याचिकाकर्ता के भानु प्रताप प्रसाद के साथ संबंध के प्रथम दृष्टया सबूत हैं। प्रासंगिक समय में याचिकाकर्ता मुख्यमंत्री थे और सदर पीएस केस नंबर 272/2023 में रिपोर्ट दर्ज करने में हेरफेर किया गया।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए जोड़ा,
“याचिकाकर्ता के खिलाफ ED द्वारा स्थापित मामला केवल PMLA Act की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए बयानों पर आधारित नहीं है, जिसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने खुद को संबंधित संपत्तियों के असली मालिकों का दावा किया है। ऐसे कई दस्तावेज हैं, जो याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी और पुलिस और न्यायिक हिरासत में रिमांड की नींव रखते हैं।“
केस टाइटल: हेमंत सोरेन बनाम प्रवर्तन निदेशालय एवं अन्य।