निजी पक्षकारों के बीच विवाद के मामले में अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय अनुच्छेद 226 का प्रयोग नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट
राधेश्याम एवं अन्य बनाम छवि नाथ एवं अन्य, (2015) 5 एससीसी 423 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि निजी पक्षकारों के बीच विवाद के मामले में पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
चीफ जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने कहा,
"निजी पक्षकारों के बीच विवाद के मामले में पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता"। (पैरा 6)
मामले के तथ्य:
निजामुद्दीन द्वारा सार्वजनिक संपत्तियों पर अतिक्रमण से अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए उनका आवेदन अस्वीकार करने के मामले में प्रतिवादियों-नगर निगम और निजी प्रतिवादियों के खिलाफ याचिका दायर की गई। याचिका पर सुनवाई करने वाले एकल न्यायाधीश ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार मानते हुए आदेश पारित किया। उक्त आदेश को विशेष अपील (रिट) दायर करके चुनौती दी गई, जिसमें इस न्यायालय द्वारा अंतरिम आदेश पारित किया गया कि जहां तक भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के आह्वान का संबंध है, वह स्थगित रहेगा।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां:
वर्तमान में विवाद का मुद्दा इस प्रश्न से संबंधित है कि क्या निजी क्षेत्र में निजी पक्षकारों के बीच विवाद के मामले में भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए अनुच्छेद 226 के तहत एकल न्यायाधीश द्वारा स्वप्रेरणा से संज्ञान लिया जा सकता है?
खंडपीठ ने राधेश्याम एवं अन्य बनाम छवि नाथ एवं अन्य, (2015) 5 एससीसी 423 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि सिविल न्यायालय के न्यायिक आदेश संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं हैं।
खंडपीठ ने कहा कि राधेश्याम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि अनुच्छेद 227 के तहत अधिकार क्षेत्र अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र से अलग है।
इसलिए यह देखते हुए कि एकल न्यायाधीश द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र का आह्वान कायम नहीं रखा जा सकता, हाईकोर्ट ने एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया।
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एकल न्यायाधीश के उक्त आदेशों के अनुपालन में की गई सभी कार्यवाही अंततः निरस्त मानी जाएंगी।
केस टाइटल: स्वप्रेरणा बनाम आयुक्त, जयपुर विकास प्राधिकरण