झारखंड हाईकोर्ट ने शराब बनाने वाली कंपनी को वैधानिक ब्याज भुगतान के आदेशों के अनुपालन के बाद आबकारी विभाग के खिलाफ अवमानना का मामला बंद किया
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झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के सचिव के खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही को बंद कर दिया।
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता स्पेंसर डिस्टिलरीज एंड ब्रेवरीज (प्राइवेट लिमिटेड) को देय वैधानिक ब्याज से संबंधित उसके आदेशों का अनुपालन किया गया। 10 जनवरी को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता कंपनी शेखर सिन्हा की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि अब याचिकाकर्ता के पक्ष में वैधानिक राशि का भुगतान कर दिया गया। इसलिए वह इस अवमानना मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं, क्योंकि याचिकाकर्ता की शिकायत का निवारण हो चुका है।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद ने अपने आदेश में कहा,
"याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील द्वारा की गई उपरोक्त दलीलों और वैधानिक राशि के भुगतान से संबंधित आदेश का अनुपालन किए जाने पर विचार करते हुए, इस अवमानना मामले को बंद किया जाता है और इसका निपटारा किया जाता है।"
इसके बाद न्यायालय ने उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के सचिव मनोज कुमार को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट दे दी। झारखंड राज्य सहित प्रतिवादियों द्वारा हाईकोर्ट के 18 अक्टूबर, 2024 और 22 नवंबर, 2024 के पूर्व आदेशों का पूरी तरह से पालन न करने के बाद अवमानना का मामला सामने आया।
इन आदेशों में याचिकाकर्ता के पैसे वैधानिक ब्याज के साथ वापस करने का निर्देश दिया गया था। मूल राशि का भुगतान तो कर दिया गया लेकिन वैधानिक ब्याज का भुगतान समय पर नहीं किया गया इसलिए याचिकाकर्ता ने अवमानना की कार्यवाही दायर की।
अदालत ने अपने 13 दिसंबर के आदेश में प्रतिवादियों की निष्क्रियता की आलोचना की थी और राज्य से अपने विभागों से स्पष्टीकरण मांगने को कहा था। अदालत को पहले बताया गया था कि वैधानिक दरों पर ब्याज के भुगतान के लिए शुरू में विधि विभाग और अन्य अधिकारियों से राय मांगी गई थी, क्योंकि आबकारी कानून में यह प्रावधान नहीं है कि वैधानिक ब्याज क्या होगा। इसके बाद वित्त विभाग को एक पत्र भेजा गया, जो मामले को स्पष्ट करने में विफल रहा।
फिर संबंधित फाइल को स्पष्टीकरण के लिए विधि विभाग में ले जाया गया और उसके बाद फाइल महाधिवक्ता के पास है। जैसे ही मामला स्पष्ट हो जाता है, उसे यथाशीघ्र और विधि के अनुसार भुगतान किया जाएगा, ऐसा तब प्रस्तुत किया गया था।
न्यायालय ने कहा था,
"इसके अलावा जब न्यायालय ने प्रतिवादी को वैधानिक ब्याज के साथ मूल राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हुए आदेश पारित कर दिया है तो फाइल को एक टेबल से दूसरे टेबल पर या एक विभाग से दूसरे विभाग में ले जाने से लेकर स्पष्टीकरण मांगना प्राधिकारी का काम नहीं है बल्कि, यदि कोई भ्रम है तो न्यायालय के समक्ष अनुमति प्राप्त करने के लिए आवेदन दायर किया जाना चाहिए था लेकिन उक्त कदम नहीं उठाया गया है।"
न्यायालय ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि आबकारी कानूनों में वैधानिक ब्याज पर स्पष्टता का अभाव है।
न्यायालय ने कहा,
"यहां, दो कारण बताओ दाखिल किए गए हैं और झारखंड राज्य के दो अलग-अलग पदाधिकारियों द्वारा दायर दोनों कारण बताओ में यह आधार लिया गया है कि वे यह समझने की स्थिति में नहीं हैं कि वैधानिक ब्याज का क्या अर्थ है, जो अपने आप में यह सुझाव देता है कि संबंधित विरोधी पक्ष स्वेच्छा से और जानबूझकर न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं कर रहे हैं।
इसके बाद न्यायालय ने मामले को 10 जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया, जिसमें कहा गया कि प्रथम दृष्टया यह ऐसा मामला है, जिसमें अवमानना की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए। झारखंड सरकार के आबकारी एवं निषेध विभाग के सचिव को आरोप तय करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया था।
अब वैधानिक ब्याज का भुगतान पूरा हो जाने के बाद न्यायालय ने अवमानना का मामला बंद कर दिया।
केस टाइटल: स्पेंसर डिस्टिलरीज एंड ब्रेवरीज (प्राइवेट लिमिटेड) बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य