बच्चों की कस्टडी पर जेंडर के आधार पर कोई वरीयता नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बच्चों की कस्टडी के मामलों में माता-पिता में से किसी को भी केवल उनके जेंडर के आधार पर वरीयता नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में निहित समानता और गैर-भेदभाव के संवैधानिक सिद्धांतों पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में केवल बच्चे का कल्याण ही सर्वोपरि विचार होना चाहिए।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने एक मां की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी। इसमें नाबालिग बच्चों की कस्टडी पिता को दी गई। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए कहा कि माता या पिता को केवल उनके जेंडर के आधार पर तरजीह देना संविधान द्वारा वर्जित है।
उन्होंने कहा,
"लैंगिक समानता हमारे संवैधानिक व्यवस्था की आधारशिला है। यह किसी भी स्थिति में नहीं माना जा सकता कि एक पिता को अपनी 'प्रभावी व्यक्तित्व' स्थिति के कारण नाबालिग की कस्टडी में मां पर कोई तरजीही अधिकार प्राप्त है।"
यह मामला एक दंपति से संबंधित है, जो कतर में रहते हैं और मार्च 2022 में उनका तलाक हो गया। कतरी अदालत ने बच्चों की कस्टडी मां को दी, जिसके बाद वह बच्चों के साथ भारत आ गई। इस पर पिता ने श्रीनगर में गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट 1890 के तहत कस्टडी के लिए कार्यवाही शुरू की। ट्रायल कोर्ट ने 2 जनवरी, 2025 को बच्चों की कस्टडी पिता को सौंपने का निर्देश दिया।
मां ने अपनी अपील में तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने जल्दबाजी में फैसला सुनाया और उसके कथित पिछले आचरण तथा पिता की बेहतर वित्तीय स्थिति को अधिक महत्व दिया, जबकि बच्चों के कल्याण की अनदेखी की। उसने कहा कि वह बच्चों की प्राथमिक देखभालकर्ता रही है और उसकी भूमिका को वित्तीय समृद्धि से नहीं बदला जा सकता।
जस्टिस वानी ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया और कहा कि माता-पिता के अधिकार बच्चे के कल्याण के अधीन हैं। उन्होंने कहा कि एक बच्चे का प्यार सुरक्षा और सम्मान के माहौल में विकसित होने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि केवल वित्तीय स्थिति ही कस्टडी का फैसला करने का आधार नहीं हो सकती।
जस्टिस वानी ने कहा,
"यह सच हो सकता है कि प्रतिवादी (पिता) वित्तीय रूप से अपीलकर्ता (मां) से बेहतर है। हालांकि, केवल वित्तीय समृद्धि अन्य महत्वपूर्ण कारकों जैसे भावनात्मक मूल्य, निरंतर देखभाल और नाबालिगों की सांस्कृतिक और सामाजिक बुनियाद को पीछे नहीं छोड़ सकती।"
अदालत ने यह भी कहा कि बच्चों की अस्थायी पसंद निर्णायक नहीं हो सकती, क्योंकि युवा बच्चों की प्राथमिकताएं प्रभावित हो सकती हैं। कोर्ट ने हिजानत के सिद्धांत पर भी पिता के तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि इस्लामी कानून के तहत भी कस्टडी माता-पिता का अधिकार नहीं बल्कि बच्चे का अधिकार है।
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए बच्चों की कस्टडी मां के पास ही रहने दी और पिता को उनसे मिलने का अधिकार दिया।
कस्टडी के झगड़े के बीच बच्ची बोली,
एक करोड़ दो, तभी चलूंगी सुप्रीम कोर्ट ने मां को लगाई फटकार
यह वीडियो बाल कस्टडी विवादों से संबंधित एक अन्य मामले को दिखाता है, जिसमें बच्चे की प्राथमिकता और उसका मानसिक स्वास्थ्य भी एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है।