निर्धारित कट-ऑफ तिथि के बाद रिटायर कर्मचारियों तक पेंशन लाभ सीमित करना अवैध नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि नियोक्ता को किसी नई पेंशन योजना को लागू करने या किसी मौजूदा योजना को समाप्त करने के लिए वैध रूप से कट-ऑफ तिथि निर्धारित करने का पूरा अधिकार है, और यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता।
जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस पुनीत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि सरकार ने एक नीति निर्णय लिया, जिसके तहत 2014 के बाद रिटायर होने वाले कर्मचारियों को नई पेंशन योजना के लाभ दिए गए, जबकि 2014 से पहले रिटायर होने वाले कर्मचारियों को इससे बाहर रखा गया।
अदालत ने माना कि अनुच्छेद 14 केवल समान वर्ग के व्यक्तियों पर लागू होता है, जबकि 2014 से पहले और बाद में रिटायर होने वाले कर्मचारी एक समान वर्ग का गठन नहीं करते।
अदालत ने कहा कि 2014 के बाद रिटायर कर्मचारियों तक पेंशन लाभ सीमित करने का नीति निर्णय न तो मनमाना है और न ही अवैध। इसके अलावा, उत्तरदाता (प्रतिवादी) 2010 में सेवा से रिटायर हो गए थे और उस समय उनका संगठन गैर-पेंशन योग्य था।
अदालत ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एस.आर. ढींगरा (2008) और स्टेट ऑफ बिहार बनाम रामजी प्रसाद (1990) मामलों पर भरोसा किया, जिनमें कहा गया था कि पेंशन योजनाओं में कट-ऑफ तिथि तब तक वैध मानी जाती है जब तक कि इसे मनमाना, तानाशाहीपूर्ण या अव्यवस्थित साबित नहीं किया जाता।
उत्तरदाता को 1981 में शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस सेंटर (SKICC) में प्रबंधक प्रशासन के रूप में नियुक्त किया गया था और बाद में वे इसके निदेशक बने। SKICC शुरू में सरकार द्वारा संचालित एक इकाई थी, लेकिन 1988 में इसे जम्मू-कश्मीर सोसायटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत एक पंजीकृत सोसायटी में बदल दिया गया।
उत्तरदाता 31 मई 2010 को रिटायर हुए, लेकिन उन्हें पेंशन लाभ से वंचित कर दिया गया क्योंकि उस समय SKICC एक पेंशन योग्य संगठन नहीं था।
2014 में, जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक आदेश जारी किया, जिसमें SKICC के कर्मचारियों को पेंशन लाभ देने की घोषणा की गई, लेकिन यह लाभ केवल 1 जनवरी 2014 या उसके बाद रिटायर होने वाले कर्मचारियों के लिए था।
उत्तरदाता ने इस आदेश को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि बाद में रिटायर होने वालों को पेंशन देना और उन्हें इससे वंचित रखना भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
हाईकोर्ट के सिंगल जज ने उत्तरदाता के पक्ष में फैसला सुनाया, कट-ऑफ तिथि को मनमाना बताते हुए निरस्त कर दिया और सरकार को निर्देश दिया कि उन्हें भी पेंशन लाभ दिया जाए।
हालांकि, जम्मू-कश्मीर सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की, यह तर्क देते हुए कि कट-ऑफ तिथि वैध और उचित थी तथा इसे मनमाना नहीं कहा जा सकता।