याचिकाकर्ता का मामला वापस लेने का अधिकार कुछ प्रतिबंधों के साथ आता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
याचिकाकर्ता की स्वायत्तता और न्यायिक निगरानी के बीच सूक्ष्म अंतर्सम्बन्ध को उजागर करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि मुकदमे में याचिकाकर्ता “डोमिनस लिटस” या मामले का स्वामी होता है, लेकिन उसे छोड़ने या वापस लेने का उसका अधिकार कुछ कानूनी बाधाओं के अधीन है।
एक मामले को वापस लेने के लिए आवेदन को अनुमति देते हुए जस्टिस संजय धर ने कहा,
“यह न्यायालय याचिकाकर्ताओं को याचिका वापस लेने की अनुमति देने से इनकार नहीं कर सकता, खासकर तब जब याचिकाकर्ता उसी कारण से कोई नई कार्यवाही दायर करने की स्वतंत्रता नहीं मांग रहे हों, जब तक कि इस न्यायालय के लिए ऐसी अनुमति देने से इनकार करने के लिए विशेष परिस्थितियां न हों।”
ये टिप्पणियां नाबालिग बच्चे की बरामदगी से जुड़ी याचिका के संदर्भ में उठीं।
यह विवाद तब शुरू हुआ, जब पेशे से वकील याचिकाकर्ता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (जिला मोबाइल मजिस्ट्रेट), सोपोर द्वारा जारी आदेश को चुनौती दी। उक्त आदेश प्रतिवादी, उसकी पत्नी द्वारा अपने नाबालिग बच्चे के संबंध में दायर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 97 के तहत आवेदन पर पारित किया गया। आदेश में सीनियर पुलिस अधीक्षक (एसएसपी), श्रीनगर को बच्चे का पता लगाने के लिए तलाशी वारंट निष्पादित करने का निर्देश दिया गया, जिसे कथित तौर पर प्रतिवादी की हिरासत से ले जाया गया।
पीड़ित पक्षों की याचिका के बाद हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश के संचालन पर रोक लगाते हुए हस्तक्षेप किया। मामले के लंबित रहने के दौरान, न्यायालय ने बच्चे की बरामदगी में तेजी लाने के लिए कई निर्देश जारी किए। हालांकि, कार्यवाही के बीच में याचिकाकर्ताओं ने अपना मामला वापस लेने की अनुमति मांगी, जिससे प्रतिवादी नंबर 1 के वकील ने कड़ा विरोध किया, जिन्हें डर था कि इस तरह की वापसी से बच्चे को बरामद करने के प्रयास पटरी से उतर सकते हैं।
मामले का फैसला सुनाते हुए जस्टिस धर ने इस बात पर जोर दिया कि मुकदमे में याचिकाकर्ता डोमिनस लिटस के रूप में अपने मामले के नियंत्रण में निहित है। आम तौर पर इसे वापस लेने के लिए स्वतंत्र है। हालांकि, यह स्वायत्तता पूर्ण नहीं है और उन परिस्थितियों में प्रतिबंधित की जा सकती है, जहां सार्वजनिक हित या न्याय के हित अन्यथा मांग करते हैं।
न्यायालय ने कहा,
“मुकदमे में याचिकाकर्ता डोमिनस लिटस होता है, जिसका अर्थ है कि वह मामले का स्वामी होता है। वह वह व्यक्ति होता है, जिसके पास मामले को संभालने और नियंत्रित करने का अधिकार होता है। याचिकाकर्ता अपना मामला छोड़ने या वापस लेने के लिए स्वतंत्र होता है, लेकिन ऐसा करने पर कुछ प्रतिबंध भी लागू होते हैं।”
उठाए गए तर्कों पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिका वापस लेने से 31 मार्च, 2023 को दी गई अंतरिम रोक समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे ट्रायल मजिस्ट्रेट को मामले को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ाने की अनुमति मिल जाएगी, जिससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि नाबालिग बच्चे की तलाश कानून के अनुसार जारी रह सके।
जस्टिस धर ने याचिका के लंबित रहने के दौरान पारित आदेशों पर भी ध्यान दिया, जिसमें बच्चे का पता लगाने के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का न्यायालय का निर्देश भी शामिल है। इन प्रयासों के बावजूद, न्यायालय ने पाया कि बच्चे का पता नहीं चल पाया है, जिससे प्रतिवादी को यह आशंका हुई कि याचिका वापस लेने से पुलिस एजेंसी की तलाश जारी रखने का संकल्प कमजोर पड़ सकता है।
इन चिंताओं को संबोधित करते हुए न्यायालय ने कहा,
“इस याचिका को खारिज करने से ट्रायल मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा शुरू की गई कार्यवाही समाप्त नहीं होगी। याचिका को वापस लेने से इस न्यायालय द्वारा उक्त कार्यवाही पर लगाई गई रोक समाप्त हो जाएगी और मजिस्ट्रेट कानून के अनुसार मामले में आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र होंगे।”
इन विचारों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को अपना मामला वापस लेने की अनुमति दी। ट्रायल मजिस्ट्रेट को नाबालिग बच्चे को बरामद करने में तेजी से आगे बढ़ने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,
“23.01.2023 को पारित मजिस्ट्रेट के निर्देशों के अनुसार SIT पहले ही गठित की जा चुकी है। केवल एक ही काम किया जाना है, SIT द्वारा उठाए जा रहे कदमों की प्रगति की निगरानी करना। ट्रायल मजिस्ट्रेट द्वारा भी ऐसा ही किया जा सकता है। इससे प्रतिवादी नंबर 1 की गिरफ्तारी का ख्याल रखा जा सकेगा।”
केस टाइटल: एडवोकेट जहांगीर हसन भट बनाम महमूदा बेगम और अन्य।