NHAI Act | NHAI राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, प्रबंधन और रखरखाव तथा सुविधाओं के निर्माण के लिए बाध्य: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-10-25 14:50 GMT

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 (NHAI Act) के तहत भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के वैधानिक कर्तव्यों को दोहराते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि NHAI कानूनी रूप से अपने अधीन राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, प्रबंधन और रखरखाव तथा ऐसे राजमार्गों के निकट सड़क किनारे सुविधाओं के निर्माण के लिए बाध्य है।

जस्टिस संजय धर ने राजिंदर सिंह नामक व्यक्ति द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए ये महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं, जिसमें जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पेट्रोल पंप और सार्वजनिक सुविधाओं की स्थापना के लिए एक निजी पक्ष को भूमि पट्टे पर दिए जाने को चुनौती दी गई।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने NHAI को प्रतिवादी निजी फर्म के पक्ष में राष्ट्रीय राजमार्ग को चार लेन बनाने के लिए उससे अधिग्रहित भूमि के संबंध में पट्टा विलेख निष्पादित करने से रोकने के निर्देश मांगे थे। उन्होंने यह भी निर्देश देने की माँग की कि पट्टा उनके पक्ष में निष्पादित किया जाए या फिर ज़मीन उन्हें वापस कर दी जाए। याचिकाकर्ता ने अपने होटल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स से लगी अनुपयोगी ज़मीन पर अधिमान्य अधिकार का दावा करते हुए तर्क दिया कि वहां पेट्रोल पंप बनने से उनका व्यवसाय प्रभावित होगा।

हालांकि, NHAI ने कहा कि ज़मीन राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण और विकास के लिए अधिग्रहित की गई, जिसमें सड़क के किनारे और सार्वजनिक सुविधाओं, जैसे विश्राम क्षेत्र, शौचालय और ईंधन स्टेशन, का निर्माण शामिल है। प्राधिकरण के अनुसार, यह ज़मीन प्रतिवादी को एक निविदा प्रक्रिया के माध्यम से आवंटित की गई, जिसमें याचिकाकर्ता ने भाग नहीं लिया था।

कोर्ट की टिप्पणियां

जस्टिस धर ने इस बात की जांच की कि क्या अधिग्रहित भूमि के हिस्से को पेट्रोल पंप के लिए पट्टे पर देना उस "सार्वजनिक उद्देश्य" से विचलित होगा, जिसके लिए इसे अधिग्रहित किया गया। NHAI Act, 1988 की धारा 16(2)(एफ) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि NHAI को राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास, रखरखाव और प्रबंधन करने तथा इसमें निहित राजमार्गों के उपयोगकर्ताओं के लिए ऐसी सुविधाएं और सुख-सुविधाएं प्रदान करने का वैधानिक दायित्व है, जो यातायात के सुचारू प्रवाह के लिए आवश्यक हैं।

जस्टिस धर ने टिप्पणी की,

"NHAI अपने में निहित राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास, प्रबंधन और रखरखाव करने और अपने में निहित राष्ट्रीय राजमार्गों के पास सड़क किनारे सुविधाओं का निर्माण करने के लिए बाध्य है।"

कोर्ट ने परिवहन मंत्रालय के परिपत्र का भी हवाला दिया, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्गों पर विकसित की जाने वाली आवश्यक सुविधाओं की सूची दी गई, जिनमें पार्किंग स्थल, रेस्तरां, शौचालय, विश्रामगृह, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, टेलीफोन बूथ, पेट्रोल पंप और कियोस्क शामिल हैं।

कोर्ट ने कहा,

"इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि NHAI, जिसके अधीन जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग निहित है, ऊपर वर्णित प्रकार की सड़क किनारे सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य है।"

जस्टिस धर ने स्पष्ट किया कि NHAI Act की धारा 13 के तहत प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहित कोई भी भूमि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आवश्यक मानी जाती है। इसलिए अधिग्रहित भूमि का उपयोग पेट्रोल पंप और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं के निर्माण के लिए करना सार्वजनिक उद्देश्य से विचलन नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने टिप्पणी की,

"यदि प्रतिवादियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बाद अप्रयुक्त रह गई भूमि का उपयोग पेट्रोल पंप स्थापित करने या सड़क किनारे कोई अन्य सुविधाएं बनाने के लिए करने का निर्णय लिया है तो इसे किसी भी तर्क से सार्वजनिक उद्देश्य के अलावा अन्य उद्देश्य नहीं कहा जा सकता।"

याचिकाकर्ता द्वारा मेसर्स रॉयल ऑर्किड होटल्स लिमिटेड बनाम जी. जयराम रेड्डी एवं अन्य (2011) 10 एससीसी 608 पर दिए गए तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह मिसाल वर्तमान मामले पर लागू नहीं होती। रॉयल ऑर्किड मामले में एक पर्यटन परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि को निजी आवास योजना के लिए हस्तांतरित कर दिया गया, जो कि प्रख्यात क्षेत्राधिकार की शक्ति के साथ धोखाधड़ी के समान था।

यहां, जस्टिस धर ने ज़ोर देकर कहा,

"यह ऐसा मामला नहीं है, जहां NHAI ने राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास से पूरी तरह अलग किसी उद्देश्य के लिए किसी निजी व्यक्ति को ज़मीन हस्तांतरित की हो, बल्कि यह ऐसा मामला है, जहां NHAI ने सड़क किनारे एक सुविधा, जैसे कि पेट्रोल पंप, विकसित करने के लिए ज़मीन पट्टे पर दी है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास में शामिल है।"

कोर्ट ने यह देखते हुए याचिकाकर्ता के पूर्व-अधिकार का दावा भी खारिज किया कि जम्मू और कश्मीर पूर्व क्रय अधिकार अधिनियम पहले ही निरस्त किया जा चुका है। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता इस आधार पर ज़मीन पर किसी भी अधिकार का दावा नहीं कर सकता। जस्टिस धर ने आगे कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता ने निविदा प्रक्रिया में भाग नहीं लिया, इसलिए उसके पास ज़मीन के आवंटन के लिए कोई कानूनी दावा नहीं है।

NHAI के फैसले में कोई अवैधता न पाते हुए कोर्ट ने प्रतिवादी के पक्ष में पट्टा बरकरार रखते हुए रिट याचिका खारिज कर दी।

जस्टिस धर ने निष्कर्ष निकाला,

"अधिनियम की धारा 13 के प्रावधानों के अनुसार, NHAI द्वारा ऐसी सुविधाओं के निर्माण हेतु भूमि का उपयोग सार्वजनिक उद्देश्य बन जाता है। इस प्रकार, याचिका में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।"

Case Title: Rajinder Singh Vs Union of India & Ors

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