रिटायर कर्मियों पर विभागीय कार्यवाही संभव, पर दंड नहीं सिर्फ सरकारी नुकसान का आकलन: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार रिटायर कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही जारी रख सकती है लेकिन केवल इस सीमा तक कि उससे राज्य को हुए वित्तीय नुकसान का निर्धारण हो सके। सेवा नियमों के तहत दंडित करने के लिए ऐसी कार्यवाही नहीं की जा सकती।
जस्टिस सिंधु शर्मा और जस्टिस शाहज़ाद अज़ीम की खंडपीठ ने रिट कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें रिटायर अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई खारिज कर दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि चूंकि अधिकारी को मार्च 2013 में रिटायरमेंट से पहले ही आरोप पत्र (चार्ज मेमो) और अभ्यारोप पत्र थमा दिया गया, इसलिए कार्यवाही की शुरुआत वैध थी।
कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सिविल सर्विस रेगुलेशंस, 1956 के अनुच्छेद 168-ए का हवाला देते हुए कहा कि संस्थापित शब्द का अर्थ चार्ज मेमो जारी कर औपचारिक रूप से कार्यवाही शुरू करना है। चूंकि यह प्रक्रिया रिटायरमेंट से पहले पूरी हो चुकी थी, इसलिए रिटायरमेंट के बाद नई कार्यवाही शुरू न करने का प्रावधान यहां लागू नहीं होगा।
कर्मचारी की इस दलील को भी खारिज कर दिया गया कि आपराधिक मामले में बरी या डिस्चार्ज हो जाने के बाद विभागीय जांच नहीं हो सकती।
खंडपीठ ने कहा,
“कानून में ऐसा कहीं नहीं है कि अदालत से बरी होने पर विभागीय कार्यवाही स्वतः रुक जाएगी। सरकार स्वतंत्र है कि वह न्यायिक कार्यवाही खत्म होने के बाद भी विभागीय जांच चला सके।”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों एस. प्रताप सिंह बनाम पंजाब राज्य और एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया बनाम प्रदीप कुमार बनर्जी (2025) का हवाला देते हुए कहा कि आपराधिक और विभागीय कार्यवाही दोनों अलग-अलग दायरों में संचालित होती हैं।
कोर्ट ने यह भी सीमा तय की कि रिटायर कर्मियों पर विभागीय जांच सिर्फ सरकारी नुकसान का आकलन करने के लिए की जा सकती है, न कि 1956 के नियमों के तहत दंड देने के लिए।
नतीजतन अपील को स्वीकार किया गया रिट कोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया गया और याचिका खारिज कर दी गई। साथ ही हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि अधिकारी को विभागीय कार्यवाही पूरी होने तक पेंशन संबंधी लाभ मिलते रहेंगे।
केस टाइटल: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर बनाम आफताब अहमद मलिक, 2025