वक्फ ट्रिब्यूनल नहीं है तो दीवानी अदालतें वक्फ विवादों की सुनवाई कर सकती हैं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-07-15 06:26 GMT

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने यह माना कि यदि वक्फ अधिनियम की धारा 83 के अंतर्गत वक्फ ट्रिब्यूनल का गठन नहीं हुआ है तो धारा 85 के अंतर्गत दीवानी अदालत के क्षेत्राधिकार पर रोक लागू नहीं होती। कोर्ट ने कहा कि जब वक्फ से संबंधित विवादों की सुनवाई के लिए कोई मंच मौजूद नहीं है तो वादियों को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता।

जस्टिस संजय धर की पीठ ने दीवानी वाद की स्वीकार्यता को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका खारिज की, जो वक्फ संपत्ति से संबंधित थी।

कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि वक्फ अधिनियम की धारा 85 में वर्णित प्रावधानों को लागू करने से पहले धारा 83 के तहत ट्रिब्यूनल का गठन आवश्यक है। यदि कोई ट्रिब्यूनल गठित नहीं हुआ है तो वक्फ संपत्ति से संबंधित विवादों के निवारण के लिए कोई मंच मौजूद नहीं होगा।”

याचिकाकर्ताओं ने CPC की आदेश 7 नियम 11 के तहत दीवानी वाद खारिज करने की मांग की थी और Nowpora बनाम CEO, औकाफ और Ziyarat बाबा रेशी बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर जैसे मामलों में दिए गए निर्णयों का हवाला दिया।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये निर्णय उस समय दिए गए, जब या तो 2004 का वक्फ अधिनियम प्रभावी था या फिर ये मामले रिट याचिकाओं की स्वीकार्यता से जुड़े थे, न कि दीवानी क्षेत्राधिकार से।

कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने वाद स्वीकार करते हुए और आदेश 7 नियम 11 के तहत याचिकाकर्ताओं का आवेदन खारिज करते हुए कोई ऐसी त्रुटि नहीं की, जो हाईकोर्ट के हस्तक्षेप का आधार बने।

अंत में हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि वाद की प्रक्रिया के दौरान वक्फ ट्रिब्यूनल का गठन हो जाता है तो मामला कानून के अनुसार उस ट्रिब्यूनल को स्थानांतरित कर दिया जाएगा।

नतीजतन पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई और कोई भी अंतरिम आदेश स्वतः समाप्त हो गया।

Case Title: J&K BOARD FOR MUSLIM SPECIFIED WAKFS & SPECIFIED WAKF PROPERTY बनाम SOURA SHOPKEEPERS WELFARE ASSOCIATION

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