चेक बाउंस मामलों में समझौते के बाद मजिस्ट्रेट निष्पादन अदालत की भूमिका नहीं निभा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-12-27 10:06 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) के तहत चेक बाउंस से जुड़े मामलों में यदि पक्षकारों के बीच वैध समझौता दर्ज हो जाता है तो ट्रायल मजिस्ट्रेट का कर्तव्य केवल उस समझौते के अनुरूप शिकायत का निपटारा करना है। इसके बाद मजिस्ट्रेट न तो समझौते के पालन की निगरानी कर सकता है और न ही उसे लागू कराने के लिए निष्पादन अदालत की तरह कार्य कर सकता है।

जस्टिस संजय धर ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें याचिकाकर्ता साजिद अहमद मलिक ने अतिरिक्त विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट, बीरवाह द्वारा जारी किए गए वारंट को चुनौती दी। याचिकाकर्ता का कहना था कि चेक अनादर से जुड़े मामले में दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाने के बावजूद मजिस्ट्रेट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्रवाई की।

अदालत के समक्ष रिकॉर्ड से यह सामने आया कि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता द्वारा जारी चेक के अनादर को लेकर शिकायत दायर की थी। शिकायत की लंबित कार्यवाही के दौरान दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ और छह नवंबर दो हजार चौबीस को ट्रायल मजिस्ट्रेट ने समझौते के समर्थन में दोनों पक्षों के बयान दर्ज किए। इसके बावजूद, शिकायत का निस्तारण करने के बजाय मजिस्ट्रेट ने समझौते की शर्तों के पालन की निगरानी शुरू कर दी और स्वयं को निष्पादन अदालत की भूमिका में रख दिया।

हाईकोर्ट ने इस प्रक्रिया को कानून के विपरीत बताते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा अपनाया गया यह तरीका आपराधिक कानून की व्यवस्था से मेल नहीं खाता। कोर्ट ने कहा कि समझौता दर्ज होने के बाद मजिस्ट्रेट का दायित्व वहीं समाप्त हो जाता है। यदि भविष्य में समझौते की शर्तों का पालन नहीं होता है तो शिकायतकर्ता को विधि के अनुसार निष्पादन की कार्यवाही शुरू करने की स्वतंत्रता होती है।

जस्टिस संजय धर ने स्पष्ट किया कि समझौते के अनुरूप शिकायत का निस्तारण करने के बाद ही, समझौते के उल्लंघन की स्थिति में निष्पादन याचिका दाखिल की जा सकती है। उसी के आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत आगे की कार्रवाई संभव है। उन्होंने यह भी कहा कि केवल समझौते को लागू कराने के लिए आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना या दमनकारी कदम उठाना कानूनन स्वीकार्य नहीं है।

इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए ट्रायल मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह मामले में आगे की कार्यवाही अदालत द्वारा बताए गए विधिक मार्ग के अनुसार ही करे। अदालत ने अपने आदेश की प्रति संबंधित मजिस्ट्रेट को अनुपालन के लिए भेजने का भी निर्देश दिया।

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