हाईकोर्ट ने पहलगाम हमले के बाद निर्वासित 63 वर्षीय पाकिस्तानी मूल की महिला को वापस भेजने के आदेश पर लगाई रोक

Update: 2025-07-02 10:10 GMT

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल जज की पीठ द्वारा पारित प्रत्यावर्तन आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी, जिसने केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) को पहलगाम हमले के बाद निर्वासित 63 वर्षीय पाकिस्तानी मूल की महिला को वापस भेजने का निर्देश दिया था।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और गृह मंत्रालय द्वारा भारत संघ बनाम रक्षंदा राशिद थ. फलक जहूर, 2025 टाइटल से लेटर्स पेटेंट अपील (एलपीए) दायर की गई थी, जिसमें एकल जज के 6 जून के आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में निर्वासन को उचित प्रक्रिया की कमी और याचिकाकर्ता के मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया गया था।

चीफ जस्टिस अरुण पल्ली की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एलपीए को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए प्रत्यावर्तन निर्देश के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी।

मामले की पृष्ठभूमि

जस्टिस राहुल भारती ने 6 जून के अपने आदेश में मामले से जुड़े “तथ्यों और परिस्थितियों की असाधारण प्रकृति” पर ध्यान दिया था, जिसमें कहा गया कि राशिद 38 वर्षों से भारत में रह रही थीं, उनकी शादी एक भारतीय नागरिक से हुई थी। वे दीर्घकालिक वीज़ा पर थीं, जिसका हर साल नवीनीकरण होता था। उन्होंने 1996 में भारतीय नागरिकता के लिए भी आवेदन किया था, जो निर्वासन के समय भी लंबित था।

एकल पीठ ने कहा था,

“मानव अधिकार मानव जीवन का सबसे पवित्र घटक है...ऐसे अवसर आते हैं जब संवैधानिक न्यायालय को मामले के गुण-दोषों के बावजूद एसओएस जैसी रियायत देनी चाहिए...”

एकल पीठ ने कहा था कि उनका निर्वासन अधिकारियों के उचित, तर्कसंगत आदेश के बिना हुआ था, एकल पीठ ने गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि वे पाकिस्तान से उन्हें भारत वापस लाने के लिए तत्काल कदम उठाएं।

गृह मंत्रालय की अपील और आधार:

गृह मंत्रालय ने अपनी अपील में रिट याचिका की स्थिरता पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि निर्वासन के समय राशिद की एलटीवी समाप्त हो चुकी थी। उनके निरंतर प्रवास का समर्थन करने के लिए कोई वैध वीज़ा मौजूद नहीं था। इसने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनजर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का भी हवाला दिया, जिसके कारण सीमित अपवादों के साथ पाकिस्तानी वीजा पूरी तरह रद्द कर दिए गए।

हालांकि, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने जनवरी, 2025 में एलटीवी नवीनीकरण के लिए आवेदन किया था, जिसे कभी खारिज नहीं किया गया। इस तरह वह वैध वीज़ा स्थिति पर बनी रही। निर्वासन 30 अप्रैल को हुआ, कथित तौर पर बिना किसी विशिष्ट आदेश के उसे भेजा गया।

Case-Title: Union Of India vs Rakshanda Rashid Th. Falak Zahoor, 2025

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