एक बार घरेलू हिंसा और CrPC की नई कार्यवाही शुरू हो जाए तो उन्हीं दावों के लिए लोक अदालत का अवार्ड अमल में नहीं लाया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-05-23 10:43 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी पक्ष ने समझौते के आधार पर लोक अदालत से अवार्ड प्राप्त कर लिया तो वह फिर से उसी विषय पर मुकदमा शुरू कर और साथ ही उस अवार्ड को लागू करने की कोशिश नहीं कर सकता।

जस्टिस संजय धर ने कहा,

“एक बार जब घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) और धारा 125 CrPC के तहत नई कार्यवाहियां शुरू कर दी जाती हैं और उसमें अंतरिम भरण-पोषण स्वीकृत हो जाता है तो पहले वाला अवार्ड उन्हीं दावों के लिए अमल योग्य नहीं रहता। उपाय या तो अवार्ड को लागू कराना है या पहले की कार्यवाही को पुनर्जीवित करना दोनों नहीं।"

यह निर्णय तारीक वाली द्वारा दायर एक याचिका में आया, जिसमें उन्होंने लोक अदालत के अवार्ड और उसके निष्पादन आदेश को चुनौती दी, जो मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, शोपियां द्वारा पारित किया गया था।

उनकी पत्नी और नाबालिग बेटी ने पहले घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 और CrPC की धारा 125 के तहत कार्यवाही शुरू की थी। साथ ही पुलिस शिकायतें भी दर्ज करवाई थीं। ये मामले बाद में लोक अदालत में आपसी समझौते से सुलझे जिसके आधार पर अवार्ड पारित हुआ। समझौते में पति द्वारा पत्नी और बेटी के लिए आर्थिक देखभाल, बेटी के भविष्य के लिए 10 लाख की राशि जमा करना, 40,000 मासिक भरण-पोषण श्रीनगर में अलग आवास और परिवार के हस्तक्षेप से बचने जैसे प्रावधान थे।

यह समझौता ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया और मार्च, 2022 में पत्नी फिर से अलग हो गईं तथा DV Act और CrPC के तहत नई याचिकाएं दायर कीं। इन नई कार्यवाहियों में उन्हें 25,000 और 20,000 प्रति माह की अंतरिम भरण-पोषण राशि दी गई।

साथ ही उन्होंने पुराने लोक अदालत अवार्ड को लागू करवाने के लिए निष्पादन याचिका भी दायर कर दी। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, शोपियां ने 5.65 लाख की वसूली और 2.40 लाख की लेवी वारंट जारी कर दी।

कोर्ट की टिप्पणियां:

जस्टिस संजय धर ने कहा कि एक ही विषय पर समानांतर कानूनी उपायों की अनुमति नहीं दी जा सकती। जब किसी पक्ष ने नए मुकदमे दाखिल करके उसमें अंतरिम राहत प्राप्त कर ली है तो पुराने समझौते के आधार पर उसी दावे के लिए अवार्ड को लागू नहीं किया जा सकता।

उन्होंने स्पष्ट कहा,

“एक बार जब प्रतिवादी नंबर 1 (पत्नी) ने नई याचिकाएं दायर कर दीं। उसमें अंतरिम भरण-पोषण प्राप्त कर लिया तो वह पुराने समझौते के आधार पर पहले दौर की कार्यवाही से संबंधित दावे के लिए भरण-पोषण की वसूली नहीं कर सकती।”

इस आधार पर हाईकोर्ट ने लोक अदालत अवार्ड की निष्पादन कार्यवाही और लेवी वारंट रद्द कर दिया लेकिन नई कार्यवाहियों में पारित अंतरिम भरण-पोषण आदेशों को बरकरार रखा और याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वे उनका पूरी तरह पालन करें और कोई बकाया हो तो उसका भुगतान करें।

केस टाइटल: तारीक वाली बनाम बीनिश एजाज़

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