जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने उर्दू में लिखे गिरफ्तारी ज्ञापन को पढ़ने में असमर्थता के लिए राज्य के वकील की आलोचना की, न्यायिक सहायता के लिए जांच अधिकारियों को बुलाने की आवश्यकता की चेतावनी दी

Update: 2024-07-03 10:09 GMT

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने उर्दू में लिखे गए गिरफ्तारी ज्ञापन को पढ़ने में असमर्थता के लिए राज्य के वकीलों की तीखी आलोचना की है, ऐसी स्थिति ने न्यायिक कार्यवाही को गंभीर रूप से बाधित किया है।

अपने आदेश में जस्टिस अतुल श्रीधरन ने कड़ी चेतावनी जारी की कि यदि ऐसी परिस्थितियां जारी रहीं, तो अदालत के पास उचित न्यायिक सहायता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जमानत आवेदन के लिए जांच अधिकारियों (आईओ) को बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।

यह टिप्पणी जमानत आवेदन की सुनवाई के दौरान की गई, जहां याचिकाकर्ता ऐजाज अहमद, जिसका प्रतिनिधित्व श्री मुमताज चौधरी कर रहे थे, ने दावा किया कि 22 अक्टूबर, 2020 को हुई एक घटना के बाद वह 23 अक्टूबर, 2020 से न्यायिक हिरासत में है।

अहमद की गिरफ्तारी के लगभग 40 दिन बाद 30 नवंबर, 2020 को प्राथमिकी दर्ज की गई और आवेदक के वकील ने अदालत को प्राथमिकी में इस देरी की ओर इशारा किया।

जस्टिस श्रीधरन ने मामले को बेहतर ढंग से समझने के लिए गिरफ्तारी ज्ञापन मांगा। हालांकि, राज्य के वकील ने दस्तावेज उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई क्योंकि यह उर्दू में था, जिससे कानूनी प्रक्रिया में एक परेशान करने वाली कमी उजागर हुई।

ज‌स्टिस श्रीधरन ने कहा, "जम्मू और कश्मीर के इस केंद्र शासित प्रदेश में एक अजीब स्थिति है, जहां पुलिस द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज उर्दू में हैं और राज्य के वकील इसे पढ़ने में असमर्थ हैं।"

अदालत ने कुशल न्यायिक कार्यवाही की आवश्यकता को रेखांकित किया और चेतावनी दी कि उचित सहायता के बिना, न्याय सुनिश्चित करने के लिए उसे हर जमानत मामले में जांच अधिकारियों को बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। आदेश में आवेदक की गिरफ्तारी के विवरण को स्पष्ट करने के लिए जांच अधिकारी की अदालत में उपस्थिति को अनिवार्य किया गया।

इसके अतिरिक्त, आदेश की एक प्रति जिला पुंछ के पुलिस अधीक्षक को अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भेजी गई। जस्टिस श्रीधरन ने जोर देकर कहा कि अदालत के निर्देश का पालन करने में किसी भी तरह की विफलता के कारण जांच अधिकारी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए बलपूर्वक उपाय किए जाएंगे।

केस टाइटलः एजाज अहमद बनाम यूटी ऑफ जेएंडके


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