आर्थिक और सार्वजनिक हित में LOC शुरू करने के लिए वैध आधार बशर्ते वे पर्याप्त सामग्री पर आधारित हों: जम्मू एंड कश्मीर हाइकोर्ट

Update: 2024-05-03 10:11 GMT

लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी किए जाने के दायरे को स्पष्ट करते हुए जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि LOC का इस्तेमाल उन व्यक्तियों के खिलाफ किया जा सकता है, जिनका देश से बाहर जाना आर्थिक या सार्वजनिक हितों के लिए हानिकारक होगा, बशर्ते कि निर्णय पर्याप्त सामग्री पर आधारित हो।

जस्टिस संजय धर ने जोर देते हुए कहा,

"यह ध्यान में रखना चाहिए कि उपर्युक्त आधारों के तहत LOC जारी करना केवल असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिए। साथ ही यह दिखाना होगा कि संबंधित व्यक्ति जांच एजेंसी की प्रक्रिया से बच रहा है और सक्षम प्राधिकारी के समक्ष यह दिखाने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि ऐसे व्यक्ति का जाना भारत के आर्थिक हितों या सार्वजनिक हित के लिए हानिकारक होगा।"

यह मामला पटेल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक रूपेन पटेल से जुड़ा था, जिस पर कश्मीर में कीरो हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना के लिए एक अनुबंध हासिल करने में अनियमितताओं का आरोप लगाया गया। जबकि पटेल को एफआईआर में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा उनके खिलाफ LOC सर्कुलर जारी किया गया। इसने पटेल को व्यावसायिक यात्रा के लिए विदेश जाने से रोक दिया। पटेल ने LOC को हाइकोर्ट में चुनौती दी यह तर्क देते हुए कि उनके खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं है और उन्होंने जांच में सक्रिय रूप से सहयोग किया है।

दूसरी ओर सीबीआई ने तर्क दिया कि पटेल के भागने का खतरा है और उनके भारत से चले जाने से जांच में बाधा उत्पन्न होगी और संभावित रूप से देश के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचेगा।

अदालत ने अपने फैसले में माना कि परंपरागत रूप से LOC तभी जारी किए जाते है, जब इस बात की संभावना होती थी कि कोई आरोपी गिरफ्तारी या मुकदमे से बच सकता है। हालांकि गृह मंत्रालय द्वारा जारी पिछले निर्णयों और प्रासंगिक दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए जस्टिस धर ने इस बात पर जोर दिया कि LOC केवल असाधारण मामलों में ही जारी किए जा सकते हैं और उन्हें पर्याप्त सामग्री पर आधारित होना चाहिए।

सुमेर सिंह सलकन बनाम सहायक निदेशक और अन्य (दिल्ली हाइकोर्ट) और हर्षवर्धन राव बनाम भारत संघ और अन्य (कर्नाटक हाइकोर्ट) का संदर्भ देते हुए पीठ ने दोहराया कि LOC किसी व्यक्ति को जांच या अदालती कार्यवाही के लिए आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने का जबरदस्ती उपाय है। इसे केवल तभी जारी किया जाना चाहिए जब पर्याप्त कारण हों और यह केवल संभावना या संदेह पर आधारित नहीं हो सकता।

अदालत ने आगे रेखांकित किया कि LOC का उद्देश्य जांच या जांच के दौरान किसी व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करना है। इसका उपयोग विदेश यात्रा के उनके मौलिक अधिकार में बाधा डालने के लिए नहीं किया जा सकता। इस विशिष्ट मामले में अदालत ने पाया कि सीबीआई ने यह स्थापित नहीं किया कि पटेल जांच से बच रहे थे। अदालत ने कहा कि पटेल और उनकी कंपनी के अधिकारी कई मौकों पर जांच एजेंसी के सामने पेश हुए थे और उन्होंने मांगी गई सभी जानकारी प्रदान की।

अदालत ने LOC की कॉपी प्रस्तुत करने या पटेल के जाने से राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचने का सुझाव देने वाली किसी भी सामग्री के अस्तित्व को प्रदर्शित करने में सीबीआई की विफलता पर भी ध्यान दिया। इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि जांच एजेंसी किसी संदिग्ध से कबूलनामे की उम्मीद नहीं कर सकती है। उसे सबूत इकट्ठा करने के लिए उचित जांच तकनीकों का उपयोग करना चाहिए।

जस्टिस धर ने जोर देकर कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा कुछ जानकारी प्रदान करने से इनकार करना असहयोग के बराबर नहीं माना जा सकता है, जब तक कि वे समन से बचते हैं या जांच के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को आत्मसमर्पण करने से इनकार करते हैं।

केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता जांच एजेंसी के प्रश्नों का उत्तर उसकी पसंद के अनुसार नहीं दे रहा है, यह जांच में असहयोग का मामला नहीं हो सकता है।

अदालत ने टिप्पणी की,

"केवल तभी जब याचिकाकर्ता प्रतिवादी नंबर 2 के समन या प्रक्रिया का जवाब नहीं देता, तब यह कहा जा सकता है कि वह जांच एजेंसी के साथ सहयोग नहीं कर रहा है। ऐसा मामला अभी नहीं है।"

इसके परिणामस्वरूप, अदालत ने पटेल के खिलाफ LOC रद्द कर दिया। हालांकि सीबीआई की चिंताओं को समझते हुए अदालत ने पटेल की विदेश यात्रा पर कुछ शर्तें लगाईं।

केस टाइटल- रूपेन पटेल बनाम भारत संघ

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