लोक अदालत के पास पक्षकार की गैर-उपस्थिति के आधार पर मामला खारिज करने का अधिकार नहीं: जम्मू–कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

Update: 2024-08-16 06:30 GMT

लोक अदालतों की भूमिका और सीमाओं को पुष्ट करते हुए जम्मू–कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि लोक अदालतों के पास पक्षकार की गैर-उपस्थिति के आधार पर मामला खारिज करने का अधिकार नहीं है।

जस्टिस संजय धर ने लोक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला करते हुए, जिसमें परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत शिकायत खारिज कर दी गई था, ने कहा कि ऐसी कार्रवाई इन वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों के दायरे से बाहर है।

याचिकाकर्ता सैयद तजामुल बशीर ने कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत गठित लोक अदालत द्वारा पारित 11 सितंबर 2021 के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

लोक अदालत ने याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति के कारण अभियोजन की कमी के लिए मोहम्मद अयूब खान के खिलाफ याचिकाकर्ता की शिकायत खारिज कर दी।

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि लोक अदालत के पास अभियोजन की कमी के कारण मामला खारिज करने का अधिकार नहीं है। ऐसा आदेश विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। दूसरी ओर प्रतिवादी ने लोक अदालत के आदेश का बचाव करते हुए तर्क दिया कि इस तरह से मामले का निपटारा करना लोक अदालत की शक्तियों के भीतर है।

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम विशेष रूप से धारा 20 के प्रावधानों की सावधानीपूर्वक जांच के बाद जस्टिस धर ने निष्कर्ष निकाला कि लोक अदालत का प्राथमिक कार्य पक्षों के बीच समझौता या समाधान की सुविधा प्रदान करना है।

न्यायालय ने कहा,

"अधिनियम की धारा 20 में निहित प्रावधानों के विश्लेषण से, जो लोक अदालत के कामकाज के तरीके को नियंत्रित करते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि लोक अदालत तभी कोई निर्णय दे सकती है, जब पक्षकार समझौता या समाधान पर पहुंचें। यदि ऐसा कोई समझौता या समाधान नहीं होता तो लोक अदालत के पास उपलब्ध एकमात्र विकल्प कानून के तहत निपटान के लिए मामले को संबंधित न्यायालय को वापस भेजना है। यदि कोई पक्ष उसके समक्ष उपस्थित होने में विफल रहता है तो लोक अदालत के पास गैर-अभियोजन के लिए भेजे गए मामला खारिज करने का कोई अधिकार नहीं है।"

न्यायालय ने आगे जोर देकर कहा कि लोक अदालतें न्याय, समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होती हैं। उनकी भूमिका विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान में सहायता करना है।

न्यायालय ने रेखांकित किया कि पक्षों को सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी मामले को पूरी तरह से खारिज करना इन सिद्धांतों के विपरीत है।

उपरोक्त के मद्देनजर हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार की और लोक अदालत का विवादित आदेश खारिज कर दिया। साथ ही मूल न्यायालय को निर्देश दिया कि वह मामले को लोक अदालत में भेजे जाने से पहले के चरण से आगे बढ़ाए।

केस टाइटल- सैयद तजामुल बशीर बनाम मोहम्मद अयूब खान।

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