घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत घरेलू संबंध स्थापित करने के लिए पिछला सहवास पर्याप्त: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-08-05 10:20 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) के तहत घरेलू संबंध पिछले सहवास के माध्यम से स्थापित किया जा सकता है और वर्तमान सहवास इसके लिए आवश्यक नहीं।

न्यायालय ने यह टिप्पणी उस मामले को संबोधित करते हुए की, जिसमें याचिकाकर्ता ने इस आधार पर घरेलू हिंसा याचिका की स्थिरता को चुनौती दी कि वह अब प्रतिवादी के साथ नहीं रहता।

यह मामला महिला द्वारा DV Act की धारा 12 के तहत दायर की गई शिकायत से उत्पन्न हुआ, जिसने अपने पति द्वारा शारीरिक, आर्थिक और भावनात्मक शोषण का आरोप लगाया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह अब प्रतिवादी के साथ नहीं रहता, इसलिए याचिका आगे नहीं बढ़नी चाहिए।

अपने निर्णय में जस्टिस संजय धर ने कहा,

"घरेलू संबंध का अर्थ दो व्यक्तियों के बीच संबंध होगा, जो या तो साझा घर में साथ रह रहे हैं या पहले रह चुके हैं। इसलिए केवल याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर 1 वर्तमान में साझा घर में नहीं रह रहे हैं यह नहीं कहा जा सकता कि दोनों के बीच कोई घरेलू संबंध नहीं है।”

न्यायालय ने DV Act की धारा 2(एफ) में परिभाषित घरेलू संबंध की व्याख्या करते हुए निर्णय सुनाया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस शब्द में वे व्यक्ति शामिल हैं, जो किसी भी समय साझा घर में साथ रह चुके हैं, चाहे उनकी वर्तमान रहने की स्थिति कुछ भी हो।

जस्टिस धर ने इस बात पर जोर दिया कि घरेलू संबंध में अतीत में साथ रहना शामिल है, जो अधिनियम द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी पहले पति-पत्नी के रूप में साथ रह चुके थे, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि घरेलू हिंसा के आरोपों पर सुनवाई होनी चाहिए।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह काफी समय से प्रतिवादी के साथ नहीं रह रहा था। परिणामस्वरूप उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिवादी से उनके लंबे समय तक अलग रहने के कारण ट्रायल मजिस्ट्रेट को उनके खिलाफ कार्यवाही जारी रखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

याचिकाकर्ता की दलील खारिज करते हुए न्यायाधीश ने दोहराया कि घरेलू संबंध का अस्तित्व वर्तमान में साथ रहने वाले पक्षों पर निर्भर नहीं है। जस्टिस धर ने निष्कर्ष निकाला कि घरेलू हिंसा के आरोपों के कारण पक्षों के बीच स्थापित घरेलू संबंध को देखते हुए ट्रायल की आवश्यकता है।

याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए प्रक्रियात्मक मुद्दों को संबोधित करते हुए अदालत ने अपीलीय अदालत द्वारा की गई त्रुटि स्वीकार की, जिसने देरी के लिए माफी आवेदन की अनुपस्थिति को नोट किया। हालांकि जस्टिस धर ने स्पष्ट किया कि इस चूक ने अपीलीय अदालत के अपील की योग्यता पर मूल निर्णय को प्रभावित नहीं किया, जिससे कोई भी हस्तक्षेप अनावश्यक हो गया।

अंततः अदालत ने याचिका खारिज कर दिया। ट्रायल मजिस्ट्रेट के निर्णय को बरकरार रखते हुए कि याचिकाकर्ता के खिलाफ घरेलू हिंसा याचिका बनाए रखने योग्य थी।

केस टाइटल- अब्दुल कयूम मुगलू बनाम इरफाना और अन्य

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