CPC | धारा 10 की प्रयोज्यता को आकर्षित करने के लिए मुद्दों की प्रकृति महत्वपूर्ण, न कि मांगी गई राहत की प्रकृति: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-07-23 08:02 GMT

सिविल मुकदमों में मुद्दों की प्रकृति के महत्व पर जोर देते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राहत की प्रकृति नहीं बल्कि उन दो मुकदमों में शामिल मुद्दों की प्रकृति CPC की धारा 10 की प्रयोज्यता को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

जस्टिस संजय धर की पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि बाद के मुकदमों में मुद्दा सीधे और काफी हद तक पहले से चल रहे मुकदमों से जुड़ा है तो CPC की धारा 10 को लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि यह अनिवार्य प्रकृति की है।

CPC की धारा 10 किसी भी मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगाती है, जब उस मुकदमे में मुद्दा सीधे और काफी हद तक उसी पक्षों के बीच पहले से चल रहे मुकदमे से जुड़ा हो।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद सोपोर में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के समक्ष कार्यवाही से उत्पन्न हुआ। 16 जुलाई, 2021 को याचिकाकर्ता अब्दुल मजीद किरमानी और अन्य ने प्रतिवादी बिलाल अहमद किरमानी के खिलाफ भूमि के संयुक्त कब्जे का दावा करते हुए विभाजन और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया।

उन्होंने बिलाल को कथित रूप से अविभाजित संयुक्त संपत्ति पर निर्माण करने से रोकने की मांग की। ट्रायल कोर्ट ने दोनों पक्षों को विवादित संपत्ति पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

इसके विपरीत, 19 जुलाई, 2021 को बिलाल ने याचिकाकर्ताओं को संपत्ति के अपने कथित हिस्से पर उनके निर्माण में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया।

उन्होंने दावा किया कि संपत्ति का पहले ही विभाजन हो चुका है और वह अपने हिस्से पर निर्माण करने के हकदार हैं। ट्रायल कोर्ट ने बिलाल के पक्ष में एकपक्षीय अंतरिम आदेश दिया, जिससे याचिकाकर्ताओं को उनके निर्माण में बाधा डालने से रोक दिया गया।

इसके बाद 26 जुलाई, 2021 को याचिकाकर्ताओं ने सीपीसी की धारा 10 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें बिलाल द्वारा दायर मुकदमे पर इस आधार पर रोक लगाने की मांग की गई कि दोनों मुकदमों का विषय एक ही था और इसमें शामिल मुद्दे समान थे।

उन्होंने तर्क दिया कि दोनों मुकदमों को एक साथ आगे बढ़ाने की अनुमति देने से परस्पर विरोधी निर्णय और अनावश्यक जटिलताएं पैदा होंगी। 7 अगस्त, 2021 को ट्रायल कोर्ट ने इस आवेदन को यह तर्क देते हुए खारिज कर दिया कि दोनों मुकदमों में मांगी गई राहत अलग-अलग है। इस प्रकार धारा 10 CPC लागू नहीं है।

इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि दोनों मुकदमों में एक ही विषय वस्तु और समान मुद्दे शामिल है, जिससे बिलाल द्वारा सीपीसी की धारा 10 के तहत दायर किए गए बाद के मुकदमे पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ और बिलाल की निर्माण गतिविधियाँ अनधिकृत थीं।

बिलाल ने जवाब दिया कि संपत्ति का बंटवारा हो चुका था और उसकी निर्माण गतिविधियाँ भूमि के अपने हिस्से पर उसके अधिकारों के भीतर थीं। उन्होंने याचिकाकर्ताओं को संपत्ति के अपने कब्जे और विकास में हस्तक्षेप करने से रोकने की मांग की।

न्यायालय की टिप्पणियां:

जस्टिस संजय धर ने CPC की धारा 10 के प्रावधानों की सावधानीपूर्वक जांच की, जिसके अनुसार कोई भी न्यायालय ऐसे मुकदमे की सुनवाई नहीं करेगा, जिसमें मामला पहले से ही समान पक्षों के बीच दर्ज मुकदमे के समान हो।

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि मुख्य मुद्दा यह है कि विचाराधीन संपत्ति विभाजित है या अविभाजित, और यह निर्धारण दोनों मुकदमों में राहत को निर्धारित करेगा।

न्यायालय ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ताओं के मुकदमे में बिलाल की निर्माण गतिविधियों के विरुद्ध विभाजन का आदेश और निषेधाज्ञा मांगी गई, जबकि बिलाल के मुकदमे में दावा किया गया कि संपत्ति पहले से ही विभाजित थी और याचिकाकर्ताओं के हस्तक्षेप को रोकने के लिए निषेधाज्ञा मांगी गई।

इस बात पर जोर देते हुए कि ट्रायल कोर्ट ने मुकदमों में शामिल मुद्दों की प्रकृति के बजाय मांगी गई राहत की प्रकृति पर ध्यान केंद्रित करने में गलती की, जस्टिस धर ने टिप्पणी की,

“दोनों मुकदमों में शामिल मुद्दे प्रकृति में समान हैं और यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पहले से शुरू किए गए मुकदमे में मुद्दा सीधे और काफी हद तक प्रतिवादी द्वारा दायर किए गए बाद के मुकदमे में मुद्दा है। इसलिए CPC की धारा 10 की प्रयोज्यता की शर्तें स्पष्ट रूप से इस मामले से जुड़ी हैं।”

पहले से शुरू किए गए मुकदमों में काफी हद तक समान मुद्दों वाले मामलों में धारा 10 CPC की अनिवार्य प्रकृति को रेखांकित करते हुए जस्टिस धर ने जोर देकर कहा कि दोनों मुकदमों को एक साथ आगे बढ़ने की अनुमति देने से विरोधाभासी निष्कर्ष निकलेंगे और मामला और भी जटिल हो जाएगा।

पीठ ने कहा,

“ये दोनों आदेश एक साथ नहीं चल सकते, क्योंकि एक बार जब मुकदमे की संपत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया, जो दोनों मुकदमों में समान है तो ट्रायल कोर्ट के लिए प्रतिवादी को इस यथास्थिति को बदलने की अनुमति देना खुला नहीं था।"

इन टिप्पणियों के आलोक मे हाईकोर्ट ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन), सोपोर द्वारा पारित 19 जुलाई, 2021 और 7 अगस्त 2021 के आदेशों को रद्द कर दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि बिलाल अहमद किरमानी के मुकदमे की सुनवाई अब्दुल मजीद किरमानी और अन्य द्वारा पहले से शुरू किए गए मुकदमे के समाधान तक स्थगित रहेगी।

केस टाइटल- अब्दुल मजीद किरमानी और अन्य बनाम बिलाल अहमद किरमानी

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