O.37 R.3 CPC | प्रतिवादी को समन की तामील के बिना बचाव की अनुमति के लिए आवेदन करने की बाध्यता नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-07-16 11:53 GMT

श्रीनगर के चौथे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा पारित एकपक्षीय निर्णय रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रतिवादी को निर्णय के लिए समन की तामील होने के बाद ही मुकदमे का बचाव करने की अनुमति के लिए आवेदन करने की बाध्यता है।

उक्त आदेश में प्रतिवादी को निर्णय के लिए समन की तामील नहीं की गई थी।

इस मुद्दे पर कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए जस्टिस संजय धर ने बताया,

“CPC के आदेश 37 के नियम 3 के अनुसार यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी को बचाव की अनुमति के लिए आवेदन तभी करना होगा, जब उसे निर्णय के लिए समन भेजा गया हो और उसे निर्णय के लिए समन भेजे जाने के दस दिनों के भीतर ऐसा आवेदन करना होगा।”

मामले की पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता निसार अहमद राठेर ने श्रीनगर के चौथे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी, जिसमें प्रतिवादी तजामुल अहमद रेशी के पक्ष में उनके खिलाफ पारित एकपक्षीय निर्णय और डिक्री रद्द करने के उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया।

यह मामला रेशी द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश 37 के तहत राठेर से 35 लाख रुपये की वसूली के लिए मुकदमा दायर करने से शुरू हुआ। राठेर दो मौकों पर ट्रायल कोर्ट में पेश हुए और उनके वकील ने वकालतनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा।

बाद की तारीख पर राठेर के वकील ने वकालतनामा पेश किया और मामले को स्थगित कर दिया। अगली तारीख पर न तो राठेर और न ही उनके वकील पेश हुए और ट्रायल कोर्ट ने दर्ज किया कि बचाव के लिए अनुमति मांगने वाला आवेदन दायर नहीं किया गया। इसके बाद कोर्ट ने रेशी के पक्ष में एकपक्षीय निर्णय पारित किया।

हाईकोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में राठेर ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें एकपक्षीय निर्णय को रद्द करने के उनका आवेदन खारिज कर दिया गया और मूल एकपक्षीय निर्णय को ही चुनौती दी।

उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें 2 फरवरी, 2023 को गिरफ्तार किया गया और 21 अप्रैल, 2023 को रिहा किया गया, जिससे उन्हें कोर्ट में पेश होने से रोका गया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि निर्धारित प्रपत्र में निर्णय के लिए समन उन्हें नहीं दिया गया।

कोर्ट की टिप्पणियां

प्रतिद्वंद्वी दलीलों पर विचार करने के बाद जस्टिस धर ने नोट किया कि ट्रायल कोर्ट ने राठेर पर निर्णय के लिए समन जारी नहीं किया या नहीं दिया। इसके बाद कोर्ट ने सीपीसी के आदेश 37 पर विचार किया, जिसमें प्रक्रियाओं के अनुक्रम को समझाया गया।

कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी को निर्णय के लिए समन दिए जाने के बाद ही बचाव के लिए अनुमति के लिए आवेदन करना होता है।

पीठ ने रेखांकित किया,

“CPC के आदेश 37 के नियम 3 में निहित प्रावधान अनिवार्य प्रकृति के हैं और उनमें कोई विचलन नहीं है। इसलिए ट्रायल कोर्ट का यह अवलोकन कि चूंकि प्रतिवादी ने बचाव के लिए अनुमति के लिए आवेदन करने में विफल रहा है, इसलिए वादी निर्णय का हकदार है, कानून के अनुसार नहीं है।"

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि राठेर का पता शिकायत में उपलब्ध था और उनके वकील ने वकालतनामा दायर किया। इसलिए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि राठेर को निर्णय के लिए समन न दिए जाने का कोई कारण नहीं था।

पीठ ने टिप्पणी की,

"इसलिए यह ऐसा मामला नहीं है, जहां याचिकाकर्ता का पता ट्रायल कोर्ट के पास उपलब्ध नहीं था, न ही यह ऐसा मामला है, जहां याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह वास्तव में शिकायत के शीर्षक में दर्ज स्थान से अलग किसी स्थान पर रह रहा था।"

यह पाते हुए कि ट्रायल कोर्ट ने सीपीसी के आदेश 37 के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया, हाईकोर्ट ने राठेर की याचिका को अनुमति दी। इस प्रकार ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित विवादित आदेश रद्द कर दिया गया।

केस टाइटल- निसार अहमद राथर बनाम ताहिर अहमद रेशी

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