मौलिक अधिकारों पर अवैध आक्रमण: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अवैध हिरासत को खारिज किया 2 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन को 22 वर्षीय स्टूडेंट आफताब हुसैन डार को 2 लाख रुपये मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया। उसकी निवारक हिरासत को अवैध और असंवैधानिक घोषित करते हुए उसे खारिज किया।
जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार करते हुए कहा,
“यह न्यायालय मानता है और मानता है कि यह 25 लाख रुपये की राशि का मुआवजा देने के लिए उपयुक्त मामला है। प्रतिवादियों द्वारा याचिकाकर्ता के पक्ष में 2 लाख रुपये का भुगतान किया जाना है। भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार भारत के नागरिक को गारंटीकृत अधिकार है। इसलिए गैरकानूनी तरीके से और दिखावटी आधार पर इसका उल्लंघन संवैधानिक न्यायालय के लिए आसान नहीं हो सकता है।”
पुलवामा निवासी आफताब जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा था, उसको जिला मजिस्ट्रेट, पुलवामा के आदेश के बाद जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत हिरासत में लिया गया। हिरासत सीनियर पुलिस अधीक्षक, पुलवामा द्वारा प्रस्तुत डोजियर पर आधारित थी, जिसमें उस पर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों से जुड़े होने और राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाया गया।
अपने हिरासत का विरोध करते हुए आफताब ने वकील जीएन शाहीन के माध्यम से तर्क दिया कि निवारक हिरासत आदेश अवैध, निराधार और बिना किसी तथ्यात्मक आधार के था, जो अधिकारियों द्वारा शक्ति के दुरुपयोग को उजागर करता है।
यह भी तर्क दिया गया कि उच्च शिक्षा की तैयारी कर रहे स्टूडेंट होने के नाते, उनकी अन्यायपूर्ण हिरासत ने उनकी शैक्षणिक गतिविधियों को बाधित किया।
हिरासत के आधारों की जांच करने पर जस्टिस भारती ने पाया कि जिला मजिस्ट्रेट पुलवामा ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया, इसे खिलौना समझकर जो हिरासत के तथाकथित आधारों के स्वर और भाव से ही बाहर निकल रहा था।
यह देखते हुए कि आधार कुछ और नहीं बल्कि खाली शब्दाडंबर थे, जिनमें याचिकाकर्ता के लिए विषय-वस्तु के नाम पर कुछ भी नहीं था, अदालत किसी भी विशिष्ट विवरण का पता लगाने में विफल रही, जिसके आधार पर प्रतिवादी याचिकाकर्ता के खिलाफ चौंकाने वाला संदर्भ और प्रोफ़ाइल तैयार करने में सक्षम थे।
इसके अतिरिक्त अदालत ने घोषित किया कि हिरासत आदेश में राज्य की सुरक्षा का भी उल्लेख किया गया, जो कि जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के बाद अप्रचलित हो गया, जिसने इसे जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश की सुरक्षा से बदल दिया। अदालत ने तर्क दिया कि इस तकनीकी त्रुटि ने हिरासत आदेश को अमान्य कर दिया।
अनुचित और गलत तरीके से की गई निवारक हिरासत के कारण हिरासत में लिए गए व्यक्ति के मौलिक अधिकार के अवैध रूप से वंचित होने और इसके लिए उसे मुआवजा पाने का उसका अधिकार स्वीकार करते हुए जस्टिस भारती ने कहा,
“अवैध हिरासत से रिहाई निस्संदेह पीड़ित व्यक्ति के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को बहाल करती है लेकिन इससे उसे और उसके शरीर को हुई क्षति के लिए कोई राहत नहीं मिलती है। इसके लिए संवैधानिक न्यायालय द्वारा दिया जाने वाला एकमात्र उपाय और राहत सार्वजनिक कानून के तहत मुआवजा है, जिसे वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता इस न्यायालय से पाने का हकदार है।”
यह निष्कर्ष निकालते हुए कि आफताब की हिरासत जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत अधिकार क्षेत्र का घोर दुरुपयोग थी, न्यायालय ने हिरासत आदेश रद्द कर दिया और हिरासत से उसकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया। इसके अतिरिक्त, उसकी स्वतंत्रता के गलत तरीके से वंचित होने को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने डार को केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा देय मुआवजे के रूप में 2 लाख रुपये का आदेश दिया।
केस टाइटल- आफताब हुसैन डार बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर