जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने कथित 250 करोड़ रुपये के घोटाले में पीएमएलए शिकायतों को खारिज किया, कहा- "अपराध की आय" की मौजूदगी धन शोधन के लिए पूर्व शर्त
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) के तहत अपराध के गठन के लिए "अपराध की आय" की मौजूदगी की आवश्यकता को रेखांकित किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसी आय के अभाव में, कोई धन शोधन अपराध नहीं हो सकता है।
250 करोड़ के कथित घोटाले में पीएमएलए के तहत दायर शिकायतों को खारिज करते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,
"इस मामले में प्राप्त उपरोक्त स्थिति को ध्यान में रखते हुए, जैसा कि पिछले पैराग्राफ में उल्लेखित स्वीकार किए गए तथ्यों से पता चलता है, कथित अपराध से स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई "अपराध की आय" नहीं हुई है। इसके अलावा, यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं ने "अपराध की आय" से जुड़ी किसी भी गतिविधि में लिप्त हैं, क्योंकि जब तक "अपराध की आय" नहीं है, तब तक "अपराध की आय" के बारे में कोई गतिविधि नहीं हो सकती है।
यह विवाद जम्मू-कश्मीर राज्य सहकारी बैंक द्वारा रिवर जेहलम को-ऑपरेटिव हाउस बिल्डिंग सोसाइटी को शिवपोरा, श्रीनगर में सैटेलाइट टाउनशिप विकसित करने के लिए स्वीकृत ₹250 करोड़ के ऋण से उत्पन्न हुआ था। आरोप लगाए गए थे कि सोसाइटी काल्पनिक थी और उचित दस्तावेज, केवाईसी मानदंड और ठोस सुरक्षा जैसी मानक प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए धोखाधड़ी से ऋण प्राप्त किया गया था।
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने 2020 में एक प्राथमिकी दर्ज की, जिसमें जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया। इसके बाद, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पीएमएलए के तहत कार्यवाही शुरू की, संपत्तियों को जब्त किया और याचिकाकर्ताओं पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया।
याचिकाकर्ता, जो कि रिवर जेहलम को-ऑपरेटिव हाउस बिल्डिंग सोसाइटी के अध्यक्ष और सचिव के रूप में कार्यरत थे, साथ ही जम्मू और कश्मीर स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष भी थे, जिसने इस परियोजना के लिए सोसाइटी को ₹250 करोड़ का ऋण स्वीकृत किया था, ने कार्यवाही को चुनौती देते हुए कहा कि इसमें कोई "अपराध की आय" शामिल नहीं थी क्योंकि ऋण राशि सीधे भूमि के भुगतान के रूप में भूमि मालिकों के खातों में जमा की गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि धन कभी उनके कब्जे में नहीं आया, जिससे पीएमएलए के तहत धन शोधन की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती।
न्यायालय की टिप्पणियां
पीएमएलए के दायरे और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए आवश्यक तत्वों पर विस्तृत टिप्पणियां करते हुए जस्टिस एसवी वाणी ने कहा कि मुख्य प्रश्न यह है कि क्या कथित अपराधों से "अपराध की आय" उत्पन्न हुई और क्या याचिकाकर्ता ऐसी आय से जुड़ी किसी गतिविधि में शामिल थे। इसने टिप्पणी की कि पीएमएलए लागू करने के लिए अपराध की आय का अस्तित्व एक अनिवार्य शर्त है।
न्यायालय ने कहा कि पीएमएलए के तहत, मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए, एक अनुसूचित अपराध का परिणाम अपराध की आय होना चाहिए। केवल तभी जब कोई व्यक्ति ऐसी आय को बेदाग संपत्ति के रूप में रखने, छिपाने या पेश करने जैसी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है, तो पीएमएलए के प्रावधानों को लागू किया जा सकता है।
न्यायालय ने विजय मदनलाल चौधरी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि अपराध की आय के अभाव में, पीएमएलए के तहत अधिकारियों के पास अभियोजन शुरू करने का अधिकार नहीं है।
रिकॉर्ड का विश्लेषण करते हुए, अदालत को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि याचिकाकर्ताओं के पास संबंधित निधि थी या उनका नियंत्रण था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर राज्य सहकारी बैंक द्वारा स्वीकृत 250 करोड़ रुपये की ऋण राशि को सीधे 18 भूस्वामियों के खातों में उनकी संपत्ति के भुगतान के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया था।
अदालत ने कहा, "...यहां याचिकाकर्ताओं के लिए तथाकथित "अपराध की आय" से जुड़ी किसी भी गतिविधि में शामिल होने का कोई अवसर नहीं था, क्योंकि स्वीकृत ऋण से जारी की गई धनराशि, जिसे शिकायत में "अपराध की आय" के रूप में वर्णित किया गया है, को सीधे भूस्वामियों के खातों में स्थानांतरित/जमा किया गया था और याचिकाकर्ताओं के पास कभी भी उक्त धन का कब्जा या नियंत्रण नहीं था, जिसके बारे में आरोप है कि उसका धनशोधन किया गया था।"
इसके अलावा, अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया, जिसने भूस्वामियों को कुर्क की गई धनराशि को वापस लेने की अनुमति दी, जिसमें पुष्टि की गई कि सोसायटी और भूस्वामियों के बीच लेनदेन वैध था। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यदि भूस्वामियों के खातों में जमा धनराशि अपराध से अर्जित होती, तो सर्वोच्च न्यायालय उसे जारी करने की अनुमति नहीं देता।
जस्टिस वानी ने कहा,
“..यहां याचिकाकर्ताओं के खिलाफ़ मनी-लॉन्ड्रिंग का मामला बनाने के उद्देश्य से भूमि स्वामियों के खातों में उक्त धनराशि को रखना न केवल कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करने का प्रयास भी है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि स्वामियों और सोसायटी के बीच लेन-देन को वास्तविक लेन-देन के रूप में माना है, जबकि भूमि स्वामियों के पक्ष में संबंधित धनराशि को जारी करने का आदेश दिया है”
न्यायालय ने कहा कि ऋण प्राप्त करने के लिए बैंक के पास संपत्ति गिरवी रखना, भले ही बैंकिंग नियमों और विनियमों का पालन किए बिना धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया हो, किसी भी व्याख्या से मनी लॉन्ड्रिंग के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। इसने तर्क दिया कि सैटेलाइट टाउनशिप के विकास के लिए झूठे दस्तावेजों के माध्यम से कथित रूप से ऋण प्राप्त करने में याचिकाकर्ताओं की कार्रवाई, धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत अपराध के बजाय जालसाजी या बैंक धोखाधड़ी का गठन करती है।
अदालत ने शिकायतों को खारिज करते हुए निष्कर्ष निकाला, "बैंकिंग नियमों और विनियमों का पालन किए बिना धोखाधड़ी से प्राप्त किए गए ऋण को किसी भी तरह से मनी लॉन्ड्रिंग नहीं कहा जा सकता है और यहां याचिकाकर्ताओं द्वारा झूठे दस्तावेज प्रस्तुत करके सैटेलाइट टाउनशिप के विकास और स्थापना के लिए धोखाधड़ी से ऋण प्राप्त करने का कार्य, अधिक से अधिक जालसाजी या बैंक धोखाधड़ी का मामला बनता है।"
केस टाइटल: हिलाल अहमद मीर बनाम प्रवर्तन निदेशालय
साइटेशन: 2025 लाइव लॉ (जेकेएल) 4