वॉलंटरी रिटायरमेंट के आवेदन पर निर्णय में देरी किसी कर्मचारी को पेंशन लाभों से वंचित नहीं कर सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-09-08 05:00 GMT

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि वॉलंटरी रिटायरमेंट के आवेदन पर निर्णय न होने से किसी कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद पेंशन लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।

पृष्ठभूमि तथ्य

प्रतिवादी को 31.12.1983 को कृषि विभाग में कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने 17.04.2006 को अवकाश के लिए आवेदन किया, जो 15.06.2006 तक स्वीकृत था। हालांकि, अवकाश समाप्त होने के बाद उन्होंने कार्यभार ग्रहण नहीं किया। उन्होंने 20.10.2008 को ही कार्यभार संभाला। 16.06.2006 से 19.10.2008 तक की अवधि को उनका देय अवकाश माना गया। प्रतिवादी ने 15.01.2010 को वॉलंटरी रिटायरमेंट (VRS) के लिए आवेदन प्रस्तुत किया, जो 01.02.2010 से प्रभावी थी। हालांकि, उनका अनुरोध लंबे समय तक विभाग के पास लंबित रहा और कोई निर्णय नहीं लिया गया। प्रतिवादी की रिटायरमेंट आयु 31.03.2020 को पूरी हो गई। उनके VRS अनुरोध को अंतिम रूप न दिए जाने के कारण उनकी पेंशन और रिटायरमेंट लाभ जारी नहीं किए गए।

व्यथित होकर प्रतिवादी ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, जम्मू पीठ के समक्ष मूल आवेदन दायर किया, जिसने याचिका स्वीकार की और अधिकारियों को पेंशन लाभ प्रदान करने के लिए उनका मामला प्रधान महालेखाकार को भेजने का निर्देश दिया। साथ ही पेंशन लाभों की सुचारू प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए 20.10.2008 से 31.03.2020 तक की अनुपस्थिति की अवधि को नियमित करने का भी निर्देश दिया।

इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर ने न्यायाधिकरण के 20.02.2025 के आदेश को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि न्यायाधिकरण ने गलती से और बिना किसी औचित्य के याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादी की 15.01.2010 से 31.03.2020 (रिटायरमेंट) तक की अनधिकृत अनुपस्थिति को क्षमा करने का निर्देश दिया ताकि प्रतिवादी कानून के तहत उसे मिलने वाले पेंशन संबंधी लाभों का लाभ उठा सके। यह भी दलील दी गई कि याचिकाकर्ता प्रतिवादी को पेंशन प्रदान करने सहित सभी उद्देश्यों के लिए 15.01.2010 तक सरकारी सेवा में मानने के खिलाफ नहीं हैं।

दूसरी ओर, प्रतिवादी ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं की निष्क्रियता के कारण 31.03.2020 को रिटायरमेंट की आयु प्राप्त करने के बाद भी उन्हें पेंशन संबंधी लाभों से वंचित रहना पड़ा। प्रतिवादी ने दलील दी कि इस अवधि को नियमित करने और पेंशन संबंधी लाभ प्रदान करने का न्यायाधिकरण का निर्देश उचित था।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने यह पाया कि प्रतिवादी सेवा में था और उसे 20.10.2008 तक सेवा में माना जाना चाहिए। 21.10.2008 से प्रतिवादी की रिटायरमेंट की तिथि अर्थात 31.03.2020 तक उसकी अनधिकृत अनुपस्थिति को प्रतिवादी द्वारा इस आधार पर उचित ठहराया गया कि उसने पहले ही स्वैच्छिक रिटायरमेंट के लिए आवेदन कर दिया। इसलिए प्रतिवादी को यह मानने का पूरा अधिकार था कि उसे स्वीकार कर लिया गया। इसलिए वह अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा था।

यह भी पाया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा वर्ष 2010 में किया गया वॉलंटरी रिटायरमेंट का अनुरोध 31.03.2020 तक, जब प्रतिवादी अपनी रिटायरमेंट की आयु तक पहुंच गया, तब तक अनिर्णीत रहा। यह माना गया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रदर्शित लापरवाही और आलस्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता और न ही उसे हल्के में लिया जा सकता है। यह देखा गया कि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ताओं की अनिर्णय की स्थिति का लाभ उठाया और अपने कर्तव्यों का पालन न करने का विचार किया। न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रतिवादी ने वॉलंटरी रिटायरमेंट का अनुरोध प्रस्तुत करते हुए 15.01.2010 के बाद सेवा का लाभ लेने का विकल्प नहीं चुना। न्यायालय ने यह माना कि याचिकाकर्ताओं की ओर से हुई चूक प्रतिवादी को उसकी सेवा के लिए पेंशन लाभों से वंचित नहीं कर सकती।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका का निपटारा कर दिया गया। न्यायाधिकरण के निर्णय को इस सीमा तक संशोधित किया गया कि प्रतिवादी को 31.12.1983 से 20.10.2008/15.01.2010 तक सेवा में माना जाएगा, बशर्ते कि वास्तविक कार्य दिवसों का सत्यापन किया जाए। याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया गया कि वे दो महीने के भीतर प्रतिवादी को पेंशन लाभ प्रदान करने का कार्य पूरा करें और प्रधान महालेखाकार को उसी अवधि के भीतर पेंशन का वितरण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया।

Case Name : UT of J & K & Ors vs Anil Sharma

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