आरोप तय करने के चरण में एलिबी का टेस्ट नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने हमले के मामले में आरोपपत्र रद्द करने से किया इनकार
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने घातक हथियारों का उपयोग करके हिंसक हमला करने के आरोपी कई व्यक्तियों के खिलाफ दायर आरोपपत्र रद्द करने की मांग करने वाली याचिका खारिज की। न्यायालय ने कहा कि अभियुक्तों द्वारा उठाए गए एलिबी (Alibi) के तर्क को रद्द करने की याचिका की आड़ में प्री-ट्रायल स्टेज में टेस्ट नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से इस आधार पर आरोपपत्र रद्द करने का आग्रह किया था कि वे कथित अपराध के स्थान पर मौजूद नहीं थे, क्योंकि वे संबंधित समय पर अपनी-अपनी पोस्टिंग पर आधिकारिक ड्यूटी पर थे।
उन्होंने अपनी दलील का समर्थन करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 का हवाला दिया।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए Alibi के तर्क बचाव का मामला है, जिस पर इस चरण में निर्णय नहीं लिया जा सकता। साक्ष्य के आधार पर ऐसे बचाव की जांच करना ट्रायल कोर्ट का काम है।
अदालत ने कहा कि वह आरोप पत्र रद्द करने की मांग करने वाली याचिका के दायरे में मिनी ट्रायल नहीं कर सकती।
अदालत ने आगे कहा कि FIR में लगाए गए आरोपों से स्पष्ट रूप से संज्ञेय अपराध होने का पता चलता है और उचित जांच के बाद आरोप पत्र सही तरीके से दायर किया गया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ताओं का मानना है कि उनके बयान की पर्याप्त जांच नहीं की गई तो वे आगे की जांच के लिए ट्रायल मजिस्ट्रेट से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं। हालांकि, मौजूदा कार्यवाही के तहत इस तरह के दावों पर विचार नहीं किया जा सकता।
यह मामला FIR से संबंधित है, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने सह-आरोपियों के साथ मिलकर कुल्हाड़ी, चाकू और लोहे की छड़ों का इस्तेमाल करके हिंसक और पूर्वनियोजित हमला किया, जिससे चोटें आईं। जांच एजेंसी द्वारा आरोपों में प्रथम दृष्टया तथ्य पाए जाने के बाद आरोप पत्र दायर किया गया।
Case-Title: Abdul Qayoom Ganie and Ors. Vs UT of J&K and others, 2025