पुलिस कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग सार्वजनिक कार्य के निर्वहन में बाधा नहीं मानी जाएगी: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-07-02 05:18 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि कि पुलिस कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग को कर्तव्य में बाधा नहीं माना जा सकता।

हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया,

“बिना किसी प्रत्यक्ष कृत्य के केवल विरोध या असंयमित भाषा का प्रयोग किसी अधिकारी को सार्वजनिक कार्य के निर्वहन में बाधा डालने का आपराधिक अपराध नहीं माना जाएगा।”

जस्टिस संदीप शर्मा की पीठ ने मामले पर निर्णय लेते हुए कहा,

“याचिकाकर्ता के खिलाफ इस मामले में सटीक आरोप यह है कि वह फेसबुक पर लाइव हुआ और कुछ टिप्पणियां कीं, लेकिन निश्चित रूप से, उसके द्वारा किया गया ऐसा कोई भी कृत्य, यदि कोई हो, याचिकाकर्ता द्वारा किया गया कोई भी व्यवधान नहीं माना जा सकता।”

यह मामला सीता राम शर्मा नामक ड्राइवर से जुड़ा है, जिसे ट्रैफिक पुलिस ने वाहन के दस्तावेज दिखाने के लिए कहा था। अनुपालन करने के बजाय शर्मा ने कथित रूप से दुर्व्यवहार किया और फेसबुक पर लाइव होकर विभिन्न टिप्पणियां कीं। इसके बाद उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 186 के तहत लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों में बाधा डालने का आरोप लगाया गया।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील नीरज शर्मा ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने पुलिस के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया या उन्हें उनके कर्तव्यों के पालन में बाधा नहीं डाली। हालांकि, राज्य ने तर्क दिया कि लाइव-स्ट्रीमिंग का उनका कार्य ही बाधा उत्पन्न करता है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बल का प्रदर्शन, धमकी या कोई भी ऐसा व्यवहार जो किसी लोक सेवक को अपने कर्तव्यों के पालन में बाधा डालता है, उसे 'बाधा' माना जाता है।

न्यायालय ने कहा,

“बल का प्रदर्शन या धमकी या लोक सेवक को अपने कर्तव्य का पालन करने में बाधा डालने वाली कोई भी कार्रवाई भारतीय दंड संहिता की धारा 186 के तहत 'बाधा' मानी जाएगी।”

न्यायालय ने आगे कहा कि फेसबुक पर याचिकाकर्ता की टिप्पणियों से पुलिस को उनके कर्तव्यों का पालन करने में बाधा डालने का कोई संकेत नहीं मिलता है।

जस्टिस शर्मा ने टिप्पणी की,

"रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि याचिकाकर्ता ने पुलिस को उसका चालान काटने से रोका, बल्कि पुलिस ने कुछ विसंगतियां देखने के बाद उसे अधिनियम की धारा 177 और 179 के तहत चालान काट दिया।

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 186 के तहत कोई मामला स्थापित नहीं हुआ, इसलिए कार्यवाही रद्द कर दी और आरोपी को उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया।

केस टाइटल: सीता राम शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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