ऐसा सबूत न हो कि महिला पुरुष के साथ कानूनी रूप से विवाहित नहीं है तो लंबे समय से पत्नी के रूप में रह रही महिला पति से भरण-पोषण पाने की हकदारः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि जब एक महिला और पुरुष लंबे समय से पति-पत्नी के रूप में रह रहे हों और जब ऐसा कोई विशेष निष्कर्ष ना हो कि महिला कानूनी रूप से विवाहित पत्नी नहीं है, तब वह भरण-पोषण की हकदार होगी। जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की सिंगल जज बेंच ने मौजूदा मामले में पीड़ित महिला को गुजारा भत्ता देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही माना।
पीठ ने कहा, “...चूंकि आवेदक और प्रतिवादी लंबे समय से पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे और किसी विशेष निष्कर्ष के अभाव में कि प्रतिवादी आवेदक की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी नहीं है, कोर्ट की सुविचारित राय है कि ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रतिवादी को गुजारा भत्ता देकर कोई गलती नहीं की है।
अदालत ने मौजूदा फैसले में चनमुनिया बनाम वीरेंद्र कुमार सिंह कुशवाह और अन्य, (2011) 1 एससीसी 141 और बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे और अन्य, (2014) 1 एससीसी 188 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भी भरोसा किया। याचिकाकर्ता पति ने भरण-पोषण की राशि को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती नहीं दी थी, पीठ ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया।
जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने कोई विशेष निष्कर्ष नहीं दिया है कि प्रतिवादी याचिकाकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी नहीं है। उन्होंने कहा कि बालाघाट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने केवल यह कहा कि प्रतिवादी महिला रीति-रिवाजों या इस तथ्य को पर्याप्त रूप से साबित नहीं कर सकी कि शादी एक मंदिर में की गई थी। इन टिप्पणियों के बाद ट्रायल कोर्ट ने खुद यह माना कि कि पुरुष और महिला लंबे समय से पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं। जब वे दोनों एक साथ रहे थे, उस समय प्रतिवादी पत्नी ने एक बच्चे को भी जन्म दिया था। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ट्रायल कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने के आवेदन को अनुमति देना उचित समझा।
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के तर्कों से सहमति व्यक्त की और कमला और अन्य बनाम एमआर मोहन कुमार (2019) के मामले में दिए गए निर्णय को दोहराया, जिसमें यह माना गया था कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के दावों के लिए विवाह का सख्त प्रमाण आवश्यक नहीं है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने श्रीमती पुष्पा पांडे एवं अन्य बनाम सुरेश पांडे (2016) में भी ऐसे ही दृष्टिकोण को दोहराया था।
मजिस्ट्रेट, ग्राम न्यायालय, बालाघाट ने आवेदक पति को प्रतिवादी पत्नी को 1500/- रुपये प्रति माह की दर से मासिक भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया था। प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बालाघाट ने पति की ओर से दायर आपराधिक पुनरीक्षण में आदेश की पुष्टि की थी।
केस नंबर: Misc. Criminal Case No. 30262 of 2023
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एमपी) 62