'शर्मनाक; क्या आप चाहते हैं कि मंदिर आपसे बकाया मांगने आएं?': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बकाया वार्षिकी पर यूपी सरकार को फटकार लगाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि यह शर्मनाक है कि एक मंदिर को यूपी सरकार से अपना बकाया (वार्षिक) जारी करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। कोर्ट ने राज्य के वकील से यह भी सवाल किया कि क्या सरकार चाहती है कि मंदिर बकाया राशि जारी करने के लिए उससे भीख मांगें।
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,
"यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम की धारा 99 के तहत, सरकार द्वारा मंदिरों को वार्षिकी का भुगतान किया जाना है। एक बार जब आप तथ्य जान लेंगे कि यह राशि है, तो आप राशि को सीधे मंदिर को हस्तांतरित क्यों नहीं करते हैं। क्या आप चाहते हैं कि मंदिर आपके पास भीख मांगने आये?
एकल न्यायाधीश ने यह टिप्पणी वृन्दावन में ठाकुर रंगजी महाराज विराजमान मंदिर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट और इसके वरिष्ठ कोष अधिकारी से यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम की धारा 99 के तहत वार्षिकी जारी करने की मांग की गई थी।
मामले में सुनवाई के आखिरी दिन कोर्ट ने टिप्पणी की कि उसे दुख है कि मंदिरों और ट्रस्टों को राज्य सरकार से अपना बकाया पाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है।
एकल न्यायाधीश ने आयुक्त/सचिव, राजस्व बोर्ड, उत्तर प्रदेश को भी अदालत में यह बताने के लिए बुलाया था कि ठाकुर रंगजी महाराज विराजमान मंदिर, वृन्दावन और वृन्दावन के 8 अन्य मंदिरों की वार्षिकी पिछले चार वर्षों से क्यों रोकी गई है।
न्यायालय के आदेश के अनुपालन में, बुधवार को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर, जब आयुक्त/सचिव, राजस्व परिषद, उत्तर प्रदेश ने यह तर्क देना चाहा कि मथुरा से कोई मांग नहीं की गई थी और चूंकि कोई मांग नहीं थी, इसलिए राज्य वार्षिकी जारी नहीं कर सकता था।
कोर्ट ने मामले में कड़ा रुख अपनाया और निम्नलिखित टिप्पणी की, "आप डीएम पर दोष मढ़ रहे हैं कि उन्होंने मांग नहीं उठाई। अगर पिछले 4 साल से मंदिर के पास फंड नहीं है तो आरती और भोग पूजा कैसे होगी? जब सरकार आपको पहली तारीख को वेतन देती है (हर महीने का) तो फिर मंदिरों को उनका बकाया महीने की पहली तारीख को क्यों नहीं मिलता?”
कोर्ट ने आगे कहा कि सरकार को UPZALR अधिनियम के अनुसार मंदिरों को बकाया भुगतान करना होगा।
कोर्ट ने कहा, "आप राजा-महाराजा नहीं हैं, बल्कि एक सरकारी कर्मचारी हैं और आपको ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए। यह करदाताओं का पैसा है, आपका नहीं कि आप इस पर महाराजा की तरह बैठे हैं।"
कोर्ट ने इस बात को भी 'शर्मनाक' बताया कि इस तरह का मामला कोर्ट में आना पड़ा।
कोर्ट ने कहा, "हम राज्य से एक हलफनामा चाहते हैं कि बकाया चुका दिया गया है। यह करदाताओं का पैसा है और यह कहीं भी जा सकता है...मंदिर, गुरुद्वारा, चर्च...शर्मनाक है कि आपकी सरकार के शासन में, एक मंदिर को बकाया पाने के लिएअदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है ।"
नतीजतन, कोर्ट ने मंदिर को बकाया भुगतान के संबंध में यूपी सरकार से हलफनामा मांगा।