धारा 438, सीआरपीसी| अग्रिम जमानत के लिए पहले सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से न्याय और न्याय प्रशासन, दोनों लक्ष्यों की पूर्ति होती है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया कि अग्रिम जमानत चाहने वाले व्यक्तियों के लिए यह सलाह दी जाती है कि वे पहले आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत अपने स्थानीय सत्र न्यायालय से संपर्क करें।
जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि यह सिद्धांत न्याय और कुशल न्याय प्रशासन दोनों सुनिश्चित करता है।
हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया,
“ऐसी आकस्मिक परिस्थितियां हो सकती हैं जिसके लिए गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ सकता है, बशर्ते कि सत्र न्यायालय से संपर्क करने के उपाय से बचते हुए पहली बार में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए उसके द्वारा बताए गए कारण वास्तविक पाए जाएं और हाईकोर्ट पहले सत्र न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका दायर करने पर जोर दिए बिना विवेक का प्रयोग कर सकता है।"
मोहम्मद शफ़ी मसी और अब्दुल रशीद मसी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये टिप्पणियां कीं, जिन्होंने पुलिस स्टेशन केलर, शोपियां में दर्ज एक एफआईआर में अग्रिम जमानत के लिए सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
यह स्वीकार करते हुए कि हाईकोर्ट और सत्र न्यायालय दोनों के पास सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत आवेदनों पर सुनवाई करने का समवर्ती क्षेत्राधिकार है, जस्टिस सेखरी ने पहले सत्र न्यायालय से संपर्क करने की स्थापित प्रथा पर जोर दिया।
पीठ ने कहा,
“यद्यपि संहिता की धारा 438 एक आरोपी को गिरफ्तारी की प्रत्याशा में जमानत लेने के लिए सत्र न्यायालय या हाईकोर्ट से संपर्क करने में सक्षम बनाती है, फिर भी राहत के लिए पहले स्थानीय क्षेत्राधिकार न्यायालय से संपर्क करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इससे न्याय और न्याय का प्रशासन, दोनों लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है।”,
इस दृष्टिकोण से होने वाले लाभों पर विचार-विमर्श करते हुए पीठ ने कहा कि स्थानीय सत्र न्यायालय, निकट और आसानी से सुलभ होने के कारण, किसी आरोपी के लिए गिरफ्तारी की प्रत्याशा में जमानत पर अपनी मुक्ति के लिए उक्त न्यायालय से संपर्क करना सुविधाजनक हो सकता है।
जस्टिस सेखरी ने आगे रेखांकित किया कि सत्र न्यायालय के फैसले के बाद जब हाईकोर्ट से संपर्क किया जाता है, तो उसे निचली अदालत के तर्क पर विचार करने का लाभ मिलता है, जिससे अधिक सूचित निर्णय मिलता है।
वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ताओं ने सत्र न्यायालय को दरकिनार करने का कोई कारण नहीं बताया और इन कारकों पर विचार करते हुए, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को जमानत के लिए सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति देते हुए आवेदन खारिज कर दिया।
केस टाइटलः मो शफी मासी बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (जेकेएल)