पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अपराधियों की उद्घोषणा के लिए निर्देश जारी किए, पुलिस को गिरफ्तारी पर पासपोर्ट, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज प्राप्त करने का आदेश दिया

Update: 2024-01-29 04:45 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अपराधियों की उद्घोषणा के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत स्थापित प्रक्रियाओं का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पुलिस अधिकारियों और न्यायालयों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार ने निर्देश दिया कि जांच अधिकारी या स्टेशन हाउस ऑफिस को घोषित अपराधी की गिरफ्तारी के समय या उसके तुरंत बाद निम्नलिखित में से कम से कम दो दस्तावेज प्राप्त करने होंगे:

(i) पासपोर्ट

(ii) पैन कार्ड की कॉपी

(iii) बैंक पासबुक

(iv) फोटोग्राफ के साथ क्रेडिट कार्ड

(v) राशन कार्ड

(vi) बिजली बिल

(vii) लैंडलाइन टेलीफोन बिल

(viii) वोटर आईडी

(ix) प्रॉपर्टी टैक्स रजिस्टर

(x) आधार कार्ड

हाईकोर्ट ने ये निर्देश उद्घोषण आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई के दरमियान दिया। आदेश में अदालत ने पाया था कि क्षेत्राधिकार पुलिस अधिकारियों के "असुरक्षित दृष्टिकोण" के कारण, याचिकाकर्ता "लगभग 15 वर्षों" तक खुद को कानून की प्रक्रिया से छुपाने में कामयाब रहा।

हाईकोर्ट ने अन्य न्यायालयों के लिए निम्नलिखित निर्देश भी जारी किये-

-30 दिनों के स्थगन को सीआरपीसी की धारा 82 (1) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं माना जा सकता है।

-धारा 82(2)(i) सीआरपीसी के सभी प्रावधानों का संचयी रूप से अनुपालन किया जाना चाहिए न कि वैकल्पिक रूप से।

-जहां अभियुक्त भारत में नहीं रहता है, उसकी उद्घोषणा उसके निवास के देश में स्थित भारतीय दूतावास के माध्यम से विदेश में की जानी चाहिए।

-रमेश चंद गुप्ता बनाम मध्य प्रदेश राज्य (जबलपुर बेंच) 2000 (1) एमपीएचटी 376 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से ‌दिए गए निर्णय के संदर्भ में समन, वारंट, उद्घोषणा जारी करने और तामील करने की निगरानी हो।

-किसी आरोपी को घोषित अपराधी घोषित करने पर कार्यवाही बंद नहीं की जाएगी, बल्कि अदालत पुलिस को घोषित व्यक्ति/अपराधी का पता लगाने के लिए सभी आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश देगी और पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी और ऐसी रिपोर्टों को समय-समय पर मंगाया जाएगा।

-अदालत, घोषित अपराधी घोषित करने के बाद, पुलिस को उसकी चल और अचल संपत्तियों का पता लगाने और पहचान करने और उसकी संपत्ति के संबंध में एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देगी।

-इसके बाद, सीआरपीसी की धारा 83 के अनुसार, अदालत घोषित अपराधी की चल और अचल संपत्तियों को कुर्क करने के लिए आगे बढ़ेगी।

-संबंधित न्यायालय पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई की निगरानी करेगा और ऐसे नए निर्देश जारी करेगा, जो आवश्यक समझे जाएं। उचित मामलों में अदालत सीआरपीसी की धारा 299 के तहत गवाहों के साक्ष्य दर्ज कर सकती है।

-यदि घोषित अपराधी आत्मसमर्पण नहीं करता है या घोषित अपराधी घोषित होने के छह महीने की अवधि के भीतर उसका पता नहीं लगाया जाता है तो उस पर आईपीसी की धारा 174-ए के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

-हालांकि, जहां अदालत आईपीसी की धारा 174-ए के तहत अपराध के लिए आरोपी के खिलाफ कार्यवाही करने का निर्णय लेती है, तो सीआरपीसी की धारा 195 के अनुसार, सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय में एक औपचारिक लिखित शिकायत दर्ज करना अनिवार्य है।

न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ यूटी के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय पर्यवेक्षी समिति का गठन किया जाए, जो भगोड़े लोगों के मामलों की निगरानी करेगी, जिन्हें घोषित व्यक्ति/अपराधी घोषित किया गया है और समय-समय पर भगोड़ों को कानून की प्रक्रिया के तहत लाने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करेगी।

कोर्ट ने कहा आरोपी के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने में सहायता के लिए।शिकायतकर्ता को सीआरपीसी की धारा 154 और 155 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराते समय आरोपी का मोबाइल नंबर और पता देना होगा या सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दाखिल करना या धारा 190 सीआरपीसी के तहत शिकायत या किसी कानून के तहत शिकायत करनी होगी।

जस्टिस बरार ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सीआरपीसी की धारा 83 के तहत संपत्ति की कुर्की "आपराधिक न्याय प्रशासन का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो क्षेत्राधिकार वाले पुलिस अधिकारियों को कानूनी प्रक्रिया के दौरान आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने की अनुमति देता है।"

साइटेशनः 2024 लाइव लॉ (पीएच) 25

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