बॉम्बे हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी की जांच पूरी करने में देरी पर मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को फटकार लगाई; कहा- निवेशकों को असमंजस में रखकर जांच को सालों तक नहीं टाला जा सकता

Update: 2024-12-31 13:04 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को महाराष्ट्र जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण (वित्तीय प्रतिष्ठानों में) अधिनियम के तहत एक "धोखाधड़ी" मामले की उचित जांच में हुए विलंब के लिए कड़ी फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने कहा कि किसी आपराधिक मामले में जांच को वर्षों तक लटकाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिससे निवेशक असमंजस में रहें।

जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज के चव्हाण की खंडपीठ ने मामले के सुनवाई के दरमियान जानना चाहा कि क्या ईओडब्ल्यू उक्त मामले की जांच में 'गंभीर' थी, क्योंकि उसने अक्टूबर 2020 में दर्ज किए गए मामले के बावजूद आरोपपत्र दाखिल नहीं किया। कोर्ट ने यह देखते हुए कि यह एक "क्लासिक मामला है, जिसमें मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने निवेशकों को निराश किया है", अपने 17 दिसंबर के आदेश में कहा,

"हम इस बात से बेहद नाखुश हैं कि जिस तरह से ईओडब्ल्यू, मुंबई ने आरोपियों के खिलाफ एक बुनियादी आरोपपत्र दाखिल करने में चार साल लगा दिए। चाहे निवेशक हों, जो इस मामले में 600 से अधिक हैं या आरोपी, उन सभी की यह वाज़िब उम्मीद है कि जांच जल्द से जल्द पूरी हो। जांच को सालों तक लटकाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिससे निवेशक असमंजस में रहें, उन्हें यह न पता हो कि मामले का नतीजा क्या होगा"।

पृष्ठभूमि

मामले में एफआईआर 7 अक्टूबर, 2020 को आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 34 (सामान्य इरादा), 420 (धोखाधड़ी), 406 (आपराधिक विश्वासघात), 409 (लोक सेवक या बैंकर, व्यापारी या एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और महाराष्ट्र जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण (वित्तीय प्रतिष्ठानों में) अधिनियम की धारा 3 (वित्तीय प्रतिष्ठानों द्वारा धोखाधड़ी से चूक) और 4 (जमा राशि वापस न करने पर संपत्ति की कुर्की) के तहत दर्ज की गई थी। मामले को उसी दिन ईओडब्ल्यू, यूनिट-8, मुंबई को स्थानांतरित कर दिया गया और फिर से नंबर दिया गया। अदालत ने कहा कि उक्त मामले में 600 से अधिक निवेशक हैं। पीठ ने कहा कि ऐसे निवेशक हैं, जो वरिष्ठ नागरिक हैं और जिन्होंने लाखों रुपये निवेश किए हैं।

पीठ ने कहा, "यह देखना पुलिस का कर्तव्य है कि जांच जल्द से जल्द पूरी हो और तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचे। सबसे अच्छी तरह से ज्ञात कारणों से, एक भी आरोप-पत्र दायर नहीं किया गया है।" पीठ ने कहा कि एक तरह से, उसे लग रहा है कि पुलिस ने निवेशकों के वैध अधिकार, कि वे जांच को शीघ्रता से, समय पर और सक्षम तरीके से पूरा करें, के साथा धोखा किया है।

जजों ने कहा, "इसके बजाय, निवेशकों को सभी अधिकारियों के सामने, अधिवक्ताओं को नियुक्त करने के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटकने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जबकि वास्तव में, उचित कदम उठाना कानून के अधिकारियों का कर्तव्य है। यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि अपराधियों को सजा मिले। वास्तव में, यह केवल इस न्यायालय के आदेश के बाद है कि सक्षम अधिकारियों ने कदम उठाए हैं।"

न्यायालय ने मुख्य लोक अभियोजक हितेन वेनेगावकर को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 218 के प्रावधानों के बारे में बताया, जिसके तहत उचित समय में आरोप-पत्र दाखिल न करने के लिए जानबूझकर और सर्वविदित कारणों से अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है।

पीठ ने कहा, "हमें डर है कि यह एक ऐसा मामला था, जहां हम उक्त धारा का इस्तेमाल कर सकते थे और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन शुरू कर सकते थे या संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ विभागीय जांच का निर्देश भी दे सकते थे।"

हालांकि, पीठ ने ऐसा करने से केवल इसलिए परहेज किया क्योंकि वेनेगावकर ने बयान दिया कि इस मामले में दर्ज प्राथमिकी (एफआईआर) में उल्लिखित सभी अपराधों के लिए आरोप-पत्र दाखिल किया जाएगा।

पीठ ने कहा, "जिस तरह से मामले की चार साल से जांच की जा रही है, उसे देखते हुए हमने श्री वेनेगावकर से यह भी पूछा कि अगर पुलिस (ईओडब्ल्यू) मामले की जांच करने और आरोप-पत्र दाखिल करने में दिलचस्पी नहीं रखती है, तो हम निवेशकों की संख्या और ईओडब्ल्यू, मुंबई द्वारा जांच पूरी करने में लगभग चार साल की देरी को देखते हुए उक्त जांच को विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंप सकते हैं, जिसके कारण वे ही बेहतर जानते हैं।"

आदेश में कहा गया, " विद्वान पीपी, श्री वेनेगावकर, ईओडब्ल्यू, यूनिट -8, मुंबई के उच्च अधिकारियों के निर्देश पर कहते हैं कि आज से चार सप्ताह के भीतर चार्जशीट दाखिल की जाएगी, दोनों आईपीसी के प्रावधानों के साथ-साथ एमपीआईडी ​​के प्रावधानों के तहत यानी 7 अक्टूबर 2020 को सीआर दर्ज होने पर जो सीआर में लागू की गई धाराएं है। बयान स्वीकार किया गया।"

यह टिप्पणी करते हुए कि उन्हें उम्मीद है कि जांच सही तरीके से की जाएगी और चार सप्ताह के भीतर आरोप-पत्र दाखिल कर दिया जाएगा, अदालत ने मामले की सुनवाई 28 जनवरी, 2025 तक स्थगित कर दी।

केस टाइटल: अरविंद सोलंकी बनाम महाराष्ट्र राज्य| आपराधिक रिट याचिका (स्टाम्प) 13125/2024)


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