लोक सेवकों को कानून के दायरे में रहना चाहिए': इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 'यूपी गुंडा एक्ट' के तहत अनुचित नोटिस पर गोरखपुर एडीएम को फटकार लगाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एक मामले के आधार पर उसके खिलाफ उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम 1970 के तहत नोटिस जारी करने के लिए अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (प्रशासन) गोरखपुर को फटकार लगाई। अदालत ने राज्य को 2 महीने के भीतर उस व्यक्ति को 20 हजार रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।
जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने यूपी सरकार के गृह विभाग के प्रमुख सचिव को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि राज्य की शक्तियों का प्रयोग करने वाले लोक सेवक "कानून की सीमा के भीतर रहें" और कानून का उल्लंघन करने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही हो सकती है।
दरअसल, याचिकाकर्ता (रवि) ने यूपी गुंडा नियंत्रण अधिनियम की धारा 3/4 के तहत एडीएम गोरखपुर द्वारा उसे जारी किए गए नोटिस को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया, क्योंकि उसका नाम धारा- 363, 366, 376, 120-बी आईपीसी और 3/4 पॉक्सो एक्ट के तहत एक ही मामले में शामिल था।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला तब दर्ज किया गया था जब उसने पीड़िता के साथ सहमति से संबंध बनाए थे और कथित पीड़िता ने अपनी मर्जी से अपना घर छोड़ दिया था और याचिकाकर्ता से शादी कर ली थी।
यह भी तर्क दिया गया कि धारा 161 सीआरपीसी और 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किए गए अपने बयानों में, उसने खुद को बालिग होने का दावा किया और स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्ता ने उसके खिलाफ कभी भी कोई बल प्रयोग नहीं किया और वह याचिकाकर्ता के साथ रहना चाहती थी।
एजीए ने दलीलों का विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता के पास प्रतिवादी संख्या दो के समक्ष प्रतिनिधित्व करने का अवसर है और इसलिए उसकी रिट याचिका पर न्यायालय द्वारा विचार नहीं किया जाना चाहिए। यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता का एक मामले का आपराधिक इतिहास है और एक बीट रिपोर्ट भी उसके खिलाफ है जैसा कि नोटिस में बताया गया है।
मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पर यह आरोप नहीं लगाया गया है कि वह किसी गिरोह का लीडर या सदस्य है या वह आदतन यूपी गुंडा अधिनियम की धारा 2 (बी) के तहत परिभाषा खंड में उल्लिखित अपराधों को करता है या करने का प्रयास करता है या उन्हें करने के लिए उकसाता है।
अदालत ने कहा कि उसके खिलाफ केवल एक मामला दर्ज है और उसे महिलाओं या लड़कियों के अपहरण का आदी नहीं पाया गया है। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले का समर्थन पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए अपने बयान में नहीं किया था और उसने आवेदक से शादी भी कर ली थी।
उपरोक्त के मद्देनजर, अदालत ने कहा कि एडीएम गोरखपुर ने "कानून के प्रावधानों पर विचार किए बिना" केवल एक मामले में याचिकाकर्ता के शामिल होने और एक बीट रिपोर्ट के आधार पर विवादित नोटिस जारी किया।
उक्त टिप्पणियों के साथ ही कोर्ट ने नोटिस रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार कर ली गई।
संबंधित समाचार में, पिछले साल यह देखते हुए कि उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 के प्रावधानों की बड़े पैमाने पर अनदेखी की जा रही है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस अधिनियम की प्रयोज्यता के संबंध में 31 अक्टूबर तक समान दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया था।
केस टाइटलः रवि बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 152 [CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. - 3277 of 2024]
केस साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एबी) 152