पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने डीएनए किट टेंडर के लिए रिश्वत लेने की आरोपी एफएसएल की उप निदेशक को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने फोरेंसिक साइंस लैब, मधुबन, करनाल, हरियाणा की उप निदेशक को भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तारी की आशंका से अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। उन पर एक कंपनी के कर्मचारियों से टेंडर प्रदान करने के लिए रिश्वत मांगने और स्वीकार करने का आरोप था।
आरोप था कि याचिकाकर्ता ने कंपनी को टेंडर दिलाने और डीएनएस/पीसीआर किट के बिलों का भुगतान करने के लिए 11 लाख रुपये की रिश्वत ली थी।
गिरफ्तारी पूर्व जमानत को खारिज करते हुए जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा, "डीएनए परीक्षण किट की खरीद में रिश्वत में शामिल है। डीएनए परीक्षण वैज्ञानिक साक्ष्य के माध्यम से जटिल जांच को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो न्याय प्राप्त करने के लिए निर्णायक और महत्वपूर्ण है, खासकर यौन उत्पीड़न और शारीरिक उत्पीड़न के मामलो में...ऐसे संवेदनशील मामले के बारे में किसी भी स्तर पर कोई भी अनुचित हस्तक्षेप या बाधा जांच और इस तरह संपूर्ण आपराधिक न्याय प्रणाली को भयानक झटका देगी और इसलिए, इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।"
अदालत ने कहा, अगर किसी अधिकारी के खिलाफ ऐसे गंभीर आरोप लगाए जाते हैं तो उनकी सूक्ष्म जांच की जानी चाहिए, यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जानी चाहिए कि किसी भी निर्दोष पर उस अपराध के लिए गलत मुकदमा न चलाया जाए जो उन्होंने नहीं किया है, और कोई भी पीड़ित उचित न्याय से वंचित ना रह जाए।
फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला, मधुबन, करनाल, हरियाणा की उप निदेशक अनीता कादियान पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13, 7 और 8 (पीसी एक्ट, 2018 द्वारा संशोधित) और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत कथित तौर पर मामला दर्ज किया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने कंपनी को टेंडर दिलाने के लिए 11 लाख रुपये की रिश्वत मांगी और ली। अभियोजन पक्ष के अनुसार एक वीडियो रिकॉर्डिंग में सह-अभियुक्तों को यह स्वीकार करते हुए देखा गया कि कादियान ने 20 लाख की रिश्वत मांगी थी, जिसमें से 11 लाख का भुगतान किया गया था।
शिकायतकर्ता, जो एफएसएल का एक वरिष्ठ अधिकारी है, द्वारा रिकॉर्ड की गई वीडियो रिकॉर्डिंग का हवाला देते हुए अदालत ने कहा, "पूरी बातचीत को पढ़ने से सरकारी अधिकारियों के हाथों कंपनी के अधिकारियों की दुर्दशा का पता चलता है। कोई भी यह बता सकता है कि वे एफएसएल मधुबन के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा रिश्वत/स्पीड मनी की अत्यधिक मांग के कारण वे डरे हुए थे।"
पीठ ने कहा, "सभी तीन आपूर्तिकर्ताओं ने शिकायतकर्ता राजीव कवात्रा के समक्ष न्यायेतर बयान दिए, जिनके साक्ष्य प्रासंगिक हैं क्योंकि उन्हें आज तक आरोपी के रूप में आरोपित नहीं किया गया है।"
कोर्ट ने नोट किया कि एकत्र किए गए साक्ष्य भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 8 और 30 के तहत प्रथम दृष्टया स्वीकार्य थे। जस्टिस चितकारा ने कहा कि पूरी जांच से पता चलता है कि एफएसएल, मधुबन के कुछ अधिकारी भारी मात्रा में रिश्वत प्राप्त करने पर ही कंपनियों को टेंडर दे रहे थे और बिलों को मंजूरी दे रहे थे।
कोर्ट ने कहा कि यदि अधिकारियों को ऐसे संवेदनशील पदों पर तैनात किया जाता है, जबकि उनकी रिपोर्ट सीआरपीसी की धारा 293 के तहत स्वीकार्य है, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि मामले के इस पहलू को देखना सरकार का काम है, लेकिन जहां तक याचिकाकर्ता के जमानत के मामले का सवाल है, डॉ. राजीव कवात्रा (शिकायतकर्ता, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी) की मध्यस्थता को उजागर करके, वह इस संबंध में किसी भी लाभ की हकदार नहीं है।
उपरोक्त के आलोक में गिरफ्तारी पूर्व जमानत की याचिका खारिज कर दी गई।
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (पीएच) 33