पति आय की कमी के बावजूद पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य, वह अकुशल श्रमिक के रूप में प्रति दिन 350 से 400 रुपये कमा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-01-29 02:45 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक पति अपनी पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण प्रदान करने के लिए बाध्य है, भले ही उसकी नौकरी से कोई आय न हो, वह अकुशल श्रमिक के रूप में प्रतिदिन 350-400 रुपये रुपये कमा सकता है।

जस्टिस रेनू अग्रवाल की पीठ ने अंजू गर्ग बनाम दीपक कुमार गर्ग 2022 लाइव लॉ (एससी) 805 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें यह माना गया था कि पति को शारीरिक श्रम से भी पैसा कमाने की आवश्यकता होती है, यदि वह सक्षम है, और क़ानून में उल्लिखित कानूनी रूप से स्वीकार्य आधारों को छोड़कर, अपने दायित्व से बच नहीं सकता।

मामले में जज एक पति द्वारा धारा 19(4) फैमिली कोर्ट एक्ट के तहत दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर विचार कर रही थीं, जिसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उन्नाव में एक फैमिली कोर्ट की ओर से पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे भरण-पोषण के रूप में आवेदन की तिथि से विपक्षी संख्या 2/पत्नी को दो हजार रुपये प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

पति का मामला था कि उसने मई 2015 में विपरीत पक्ष नंबर 2 से शादी की, और अपने वैवाहिक घर में केवल चार दिनों तक साथ रहने के बाद, वह अपने माता-पिता के घर लौट आई और सुलह की कई कोशिशों के बावजूद, उसकी पत्नी ने लौटने से इनकार कर दिया।

उनका मामला था कि जब दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत उनका मुकदमा लंबित था, उसी समय पत्नी ने उनसे गुजारा भत्ता की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया था और फैमिली कोर्ट ने बिना इस पर विचार किए अनुमति दे दी थी। पत्नी ने बिना किसी वैध कारण के स्वेच्छा से अपने ससुराल का घर छोड़ दिया था और जनवरी 2016 से अपने माता-पिता के घर पर रह रही थी।

प‌ति की ओर से यह भी कहा गया कि वह एक मजदूर के रूप में काम करते हैं, किराए पर रहते हैं, गंभीर रूप से बीमार हैं और एक डॉक्टर से इलाज करा रहे हैं, और उनकी पत्नी स्नातक हैं, वह खुद के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त पैसा कमा रही हैं।

दूसरी ओर, पत्नी का मामला यह था कि दहेज के लिए उस पर की गई क्रूरता के कारण उसे अपना वैवाहिक घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पति के पास कृषि भूमि है, वह 10,000 रुपये के मासिक वेतन पर एक कारखाने में काम करता है, और अपने वेतन, दुग्ध उत्पाद व्यवसाय और कृषि भूमि से लगभग 50,000 रुपये की अतिरिक्त मासिक आय अर्जित करता है।

मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने पति के चिकित्सा उपचार के संबंध में दस्तावेजी साक्ष्यों को देखने के बाद पाया कि वह किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित नहीं था। न्यायालय ने यह भी कहा कि हालांकि उसकी पत्नी ने कोई सबूत नहीं दिया कि पति नमक कारखाने में काम करता था या किराए पर मारुति वैन चलाता था, हालांकि, न्यायालय ने कहा, रिकॉर्ड पर स्पष्ट सबूत थे कि पति एक था स्वस्थ आदमी पैसा कमाने में सक्षम था और अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी था।

कोर्ट ने कहा, “यदि अदालत यह मानती है कि पुनरीक्षणकर्ता की अपनी नौकरी से या मारुति वैन के किराए से कोई आय नहीं है, तब भी पुनरीक्षणकर्ता अपनी पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करने के लिए बाध्य है, जैसा कि अंजू गर्ग बनाम दीपक कुमार गर्ग 2022 के मामले में शीर्ष न्यायालय ने माना है और यदि वह खुद को श्रम कार्य में भी संलग्न करता है तो भी वह अकुशल श्रमिक के रूप में न्यूनतम मजदूरी के रूप में लगभग 350/- रुपये से 400/- रुपये प्रति दिन कमा सकता है।''

न्यायालय ने यह भी कहा कि मुकदमे के दौरान पुनरीक्षणकर्ता द्वारा कोई सबूत पेश नहीं किया गया कि उसकी पत्नी व्यभिचार में रह रही थी जो उसे भरण-पोषण पाने से वंचित कर देता। इस पृष्ठभूमि में, अदालत ने पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए उसकी पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसे आवेदन की तिथि से 2000/- प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था और भरण-पोषण की बकाया राश‌ि का भुगतान पांच आसान त्रैमासिक समान किश्तों में करने का निर्देश दिया गया है।

केस टाइटल: कमल बनाम स्टेट ऑफ यूपी गृह सचिव लखनऊ के माध्यम से, और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 46

केस साइटेशन: 2024 लाइवलॉ (एबी) 46

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