विदेश यात्रा करना मौलिक अधिकार, अथॉरिटी पासपोर्ट देने से इनकार करने के लिए आवेदक के पते पर चल रहे विवाद का हवाला नहीं दे सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी, मुंबई को महिला और उसके दो बेटों के पासपोर्ट को नवीनीकृत करने का निर्देश दिया, जिसे पहले महिला के जीजा द्वारा उनके द्वारा उनके पासपोर्ट आवेदनों में बताए गए पते पर आपत्ति जताने के कारण पासपोर्ट अथॉरिटी ने खारिज कर दिया था।
जस्टिस एएस चंदुरकर और फिरदोश पी. पूनीवाला ने की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा,
''किसी व्यक्ति को इस आधार पर विदेश यात्रा करने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता कि उस संपत्ति के संबंध में कोई विवाद है, जिसका उल्लेख उसके द्वारा दिए गए पते में किया गया।"
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि पासपोर्ट में याचिकाकर्ताओं का पता उन्हें उक्त संपत्ति के संबंध में कोई अधिकार नहीं देगा, जिससे कि किसी भी तरह से जीजाजी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
बहरहाल, अदालत ने कहा कि विदेश यात्रा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है। इसलिए पासपोर्ट एक्ट, 1967 में निर्धारित कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
यह देखा गया,
"चूंकि याचिकाकर्ताओं ने विदेश यात्रा के मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए वर्तमान याचिका दायर की, जो उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी दी गई। अधिकार क्षेत्र के बिना उनके लिए पासपोर्ट के नवीनीकरण से इनकार करने वाले उक्त आदेशों को चुनौती दी, इसलिए वर्तमान याचिका स्पष्ट रूप से वैकल्पिक उपचार के नियम के अपवाद के अंतर्गत आती है।''
पासपोर्ट अथॉरिटी ने राजिंदर कौर और उनके दो बेटों के पासपोर्ट को इस आधार पर नवीनीकृत करने से इनकार कर दिया कि महिला के बहनोई गुरविंदर चानन सिंह लायल ने उनके पासपोर्ट आवेदन में उनके द्वारा उल्लिखित पते पर आपत्ति जताई है।
लायल ने दलील दी कि पता उसके नाम पर एक कमरे का है और उसी को लेकर संपत्ति विवाद चल रहा है। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि संपत्ति के अधिकार को यह स्पष्ट करके संरक्षित किया जा सकता है कि पासपोर्ट में पते का उल्लेख अपीलकर्ताओं को कोई स्वामित्व अधिकार प्रदान नहीं करेगा।
अदालत ने प्रतिवादी नंबर 2 को निर्देश दिया कि वह प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा उठाई गई आपत्ति के गुण-दोष पर ध्यान दिए बिना पासपोर्ट एक्ट और पासपोर्ट नियमों के प्रावधानों के अनुसार याचिकाकर्ताओं को पासपोर्ट जारी करे।
अदालत ने माना कि पासपोर्ट अथॉरिटी द्वारा इनकार करने के लिए उद्धृत आधार "मनमाना और अधिकार क्षेत्र के बिना" है। यह भी देखा गया कि पासपोर्ट एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो उल्लिखित आधार पर इनकार करने में सक्षम बनाता हो।
पीठ ने कहा,
"यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि पासपोर्ट में याचिकाकर्ताओं के पते का संकेत अपने आप में उन्हें उसमें उल्लिखित संपत्ति के संबंध में कोई अधिकार प्रदान नहीं करेगा। ऐसा समावेशन अन्य लंबित कार्यवाही में प्रतिवादी नंबर 3 के अधिकारों और तर्कों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगा।“
अपीयरेंस- याचिकाकर्ताओं के लिए वकील भारती शर्मा।
वाई. आर. मिश्रा a/w. प्रतिवादी नंबर 1 और 2-यूओआई के लिए डी. ए. दुबे।
एडवोकेट अनीश जाधव a/w. प्रतिवादी जीजाजी की ओर से श्री रुशिकेश केकेन।
केस नंबर- रिट याचिका नंबर 4917/2022
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